Saturday, July 5, 2025

पुणे की यात्रा

 

                                                     आ अब लौट चलें...

पुणे का नाम पहली बार याद नहीं कब सुना था लेकिन बहुत साल पहले जब लालू भैया के साथ स्टेशन की तरफ जा रहा था तो उनकी नजर रूपक भैया पर पड़ी। रूपक भैया रिक्शा पर सामान लिए स्टेशन से लौट रहे थे। बाद में लालू भैया ने बताया कि वह पुणे में रहते हैं। तब मैं दिल्ली भी नहीं आया था शायद!

2014 में मुंबई आकर सबकुछ सामान्य चल रहा था कि एक दिन मालूम चला कि मुझे पुणे जाना है। तब ऑफिस की गाड़ी से ही टूर होता था। टाटा सूमो, जिसके आगे भारत सरकार लिखा हुआ करता था। अभी भी कई सारी गाड़ियां ऑफिस में पड़ी हैं जो अब सेवा में नहीं हैं। पहली बार मैं मुंबई से कहीं बाहर जा रहा था। यात्रा आदेश निकला, मेरे रहने के लिए वहां ऑफिस का गेस्ट हाऊस बुक हुआ और मेरे साथ काम करने वालों ने बताया कि कैसे-कैसे क्या-क्या करना होता है। मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि कार्यक्रम क्या था लेकिन तब मेरी सैलरी शायद पच्चीस हजार रुपये ही थी। पुणे जाना मेरे लिए नया था और मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे जैसी सड़क मैंने जिंदगी में पहली बार देखी थी।

उसके बाद कई बार पुणे जाना हुआ। शादी के बाद पुणे से पारिवारिक रिश्ता भी जुड़ा और वहां की एक महिला पत्रकार ने मुझपर डोरे भी डाले। पुणे में कोथ्रूड में दूरदर्शन के गेस्ट हाऊस के साथ-साथ सबसे ज्यादा जहां रहना हुआ वह था एमआईटी गेस्ट हाऊस। वहां के स्ट्रींगर्स की बदौलत यहां रहने का फ्री में इंतजाम हुआ करता है। इसके अलावा वहां हॉटल क्लासिक में भी रहना हुआ जहां जीएसटी के बिल जरूरत मुताबिक मिल जाते थे और इधर-उधर कई तरह के ठिकानों पर रहना हुआ, जिसमें एनडीआरएफ की मुख्यालय भी शामिल था।

कुल मिलाकर जब इसबार पुणे गया तो मैं अपनेआप को बहुत शांत महसूस कर रहा था। एमआईटी के एस-3 कमरे में मुझे ठहराया गया। यहां भाग्य और बच्चों के साथ भी मैं आ चुका हूं शायद, कमरा वैसे अलग था। 

एनडीए पासिंग आऊट पैरेड, प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के दौरे, प्रकाश जावड़ेकर का दौरा जब वह सूचना और प्रसारण मंत्री थे, खेलो इंडिया कार्यक्रम, योजनाओं का कार्यक्रम, मन की बात और न जाने क्या-क्या कवर किया पुणे में।

अब जब पूरी दुनिया ही फीकी-फीकी सी लगती है। कहीं कोई स्वाद नहीं और न ही कहीं कोई तरंग दिखता है तो सोचता हूं कि जो बचा है उसकी एक तस्वीर ले लूं ताकि खुद को यकीन दिला सकूं कि एक वक्त ऐसा भी था जब थोड़ी रौनक बची हुई थी, थोड़ी जिंदगी बची हुई थी, थोड़ी सांस बची हुई थी।

ड्राइवर राज को बोला था एक तस्वीर ले लो मेरी, उसने ही ली है। अच्छी है।



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