Thursday, March 7, 2024

 

                                                   पहला पूजा, पहला शंख!

कितनी बारीक बारीक चीजें हैं जो समय के साथ कभी मोटी तो कभी पतली होती चली जाती है। कुछ बेहद मामूली सी लगने वाली चीज बहुत बड़ा शोर मन में रह-रहकर करती रहती है और कुछ बड़ी-सी लगने वाली चीज यूं ही बीतते-बीतते बीत जाती है।

फरवरी और मार्च गजब कश्मकश भरा महीना रहा। प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलताओं का अफसोस मन में भरे रहने के बावजूद कई बड़ी चीजें हुई। अपना जमीन होना, ज्योतिर्लिंग जाना, सपरिवार सड़क दुर्घटना में बाल-बाल बचना, परमोद भैया का कर्ज चुकाना, गन्नू को नई साईकिल देना और अंत में श्री सत्यनारायण भगवान का पूजा संपन्न होना।

जो चीजें हुई उनमें सबसे बड़ी चीज रही सत्यनारायण भगवान की पूजा। कुछ बड़ा होने पर यह पूजा दिए जाने के रिवाज जैसा रहा है। उदाहरण के लिए किसी की नौकरी, कोई धार्मिक आयोजन या फिर किसी की जेल से रिहाई। यह एक मन्नत जैसा है। मेरे लिए यह मन्नत से बहुत अलग हटकर था। भाग्य की नौकरी लगने से पहले मन में एक कसक थी कि मैंने कभी सत्यनारायण भगवान की पूजा नहीं दी। उसकी नौबत या ये कहें कि उसका अवसर ही नहीं मिला कभी। न तो कभी वैसी नौकरी हुई कि लगा हो कि यह पूजा देने लायक नौकरी है और न ही कभी वैसा चमत्कार हुआ कि लगा हो कि अब दूर तक उजाला पसर गया। कुल मिलाकर भाग्य की नौकरी को लेकर मन में पूजा का एक ख्याल था। दीदी ने बोल रखा था कि मन में हुआ है तो कर ही लेना देर मत करना।

कुल तेरह छुट्टियों का जुगाड़ करके भाग्य मुंबई आई। 26 फरवरी से लेकर 7 मार्च तक की छुट्टी में रेस अगेंस्ट टाइम जैसा सबकुछ हो रहा था। ट्रेन इससे पहले कि एलटीटी पर लगती, फोन आ गया कि शाम में नागपुर निकलना है फ्लाइट से। इन सब चीजों की तो इन दस सालों में आदत हो गई है, इसलिए ज्यादा अफसोस या दुख नहीं हुआ। अलबत्ता यवतमाल के दौरे के बाद मुंबई आते ही बता चला कि फिर औरंगाबाद जाना है। कुल मिलाकर भाग्य की बारह-तेरह दिनों की छुट्टियों में छह-सात दिन मैं खुद मुंबई से बाहर रहा। बचे दिनों में एलीफेंटा और पुणे का ज्योतिर्लिंग की यात्रा हो पाई और आज आखिरकार सत्यनारायण भगवान का पूजा संपन्न हो गई।


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