Friday, February 9, 2024

पावर ब्रेक

                                                         बड़ा दांव

साहित्य के सूख जाने से जो जर्जर-सा वक्त दिखता है वही तो दिख रहा है। न कहीं भाव न कहीं जुड़ाव। हर चीज प्रैक्टिकल है, व्यावहारिक है, प्रोफेशनल है।

कुछ चीजें हाथ लगीं तो अमित की याद बरबस ही आ गई। टुकड़ों-टुकड़ों में उसने बताया था कि कैसे उसने देर रात बाथरूम में, घर के किसी कोने में, छत पर और न जाने कैसे-कैसे कोशिश करके बहुत सारे प्रमाण जुटाए थे उसके खिलाफ। फिर हो न हो उसे भनक लगी होगी या इसने कुछ बोला होगा, बात ऐसी बिगड़ी कि एक के बाद एक कई मुकदमे दोनों तरफ से होते चले गये। फजीहत जितनी हो सकती थी हुई, भला इतना ही हुआ कि किसी को जेल ही हवा नहीं खानी पड़ी!

समय की बड़ी किल्लत रही है। पहले दिल्ली में और अब मुंबई में। किल्लत इतनी कि अगर कोई रात में एक बजे किसी काम के लिए कहे तो भरपूर कोशिश की जाती है कि वह काम रात के रात ही खत्म हो जाए क्योंकि आगे फिर वह लंबित रहा तो पता नहीं कितने फोन, कितना रिमाइंडर, कितने वाट्सएप और कितना स्ट्रेड बिछा देगा। रिश्ता संभालना एक जोखिम भरा काम है। हल्दी भी सावधानी हटी तो रिश्ते तार-तार हो जाते हैं। पति-पत्नी के बीच के रिश्ते का तो कहना ही क्या! एक झटके में काम तमाम होता है। 

मंथन चलता रहा कि मोर्चेबंदी करके व्यापक तैयारी की जाए या फिर आर या पार कर लिया जाए अधिकतम नतीजे को ध्यान में रखकर, तय यही हुआ कि काम खत्म ही कर दिया जाए। फिर जो होना हो हो जाए! बाद का कौन जाने कब किस करवट ऊंट बैठे और कौन सा मौसम कब सर पर मंडराने लगे।

धीमे-धीमे हवा चलनी शुरू हुई। हवा जैसे-जैसे तेज हुई तपिश भी बढ़ती गई। फिर शोर हुआ। देर रात गहन सन्नाटा और अगली सुबह श्मशान सी शांति के बीच जोर की आंधी आई। ये सिलसिला तीन-चार रोज चला और फिर लगा कि मौसम साफ हो गया है।

अमित का रास्ता लेना गलत फैसला होता। अपना फैसला सही था। जो बच गया वह अपना था, जो नहीं बचा वह अपना नहीं था।

No comments:

Post a Comment