वे रेलवे स्टेशन!
बिहार में ट्रेन से बेगूसराय, बरौनी और कटिहार के बीच कई बार आना-जाना हुआ। ये बातें हैं तो करीब बीस साल पुरानी लेकिन कभी-कभार इनकी याद ऐसे आती है लगता है कल की ही बात हो। साथ ही मन करता है कि समय के पहिए को वापस घुमाकर वहां पहुंचा जाये और फिर से उन स्टेशनों पर चल रही हवाओं को महसूस किया जाए।
तिलरथ ऐसा ही एक स्टेशन था। बरौनी जाने के लिए बेगूसराय से ट्रेन पकड़ने के बाद जो पहला स्टेशन आता था वह तिलरथ था लेकिन यह स्टेशन दिमाग में किसी और वजह से बैठा हुआ है। दरअसल हाटे-बजारे एक्सप्रेस पसंदीदा ट्रेन हुआ करती थी कटिहार जाने के लिए। यह ट्रेन तब बरौनी से कटिहार के बीच चलती थी और लगभग खाली जाती थी। तब सामान्य डब्बे में यात्रा करना होता था और टिकट शायद पचास या पचपन रुपये की आती थी। बेगूसराय से बरौनी का टिकट शायद बीस रुपये में आता था और जहां तक याद है मैं कई बार बिना टिकट यात्रा करता था और किसी परिचित का रेफरेंस दे देता था। वह एक ऐसा कालचक्र था जहां मैं खुद को आज देखूं तो खुद से नफरत करने लगूं। बहरहाल, वजहें थीं जो थीं लेकिन फिलहाल बात सिर्फ स्टेशन की।
होता ये था कि तिलरथ छोटा स्टेशन था और वहां सिर्फ सवारी गाड़ियां यानि पैसेंजर ट्रेनें ही रूका करती थीं। एक्सप्रेस या सुपर फास्ट ट्रेनें वहां नहीं रूकती थीं। जब मैं बेगूसराय में किसी एक्सप्रेस ट्रेन में चढ़ता था बरौनी के लिए तो मन ही मन यही मनाता था कि तिलरथ नहीं रूके क्योंकि कहने को तो वहां एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव नहीं था लेकिन चूंकि तिलरथ के बाद बरौनी स्टेशन था जो एक बड़ा जंक्शन था तो सभी ट्रेनों के लिए जगह बनाने या अन्य कई कारणों से एक्सप्रेस ट्रेनों को भी तिलरथ में रोक दिया जाता था और कभी-कभी तो आधे से एक घंटे तक गाड़ी वहां रूकी रहती थी। हालत ऐसी हो गई थी कि तिलरथ से पहले अगर गाड़ी धीमी होनी शुरू हुई तो मन भारी होने लगता था और तिलरथ में रूकी गाड़ी में जैसे ही हॉर्न बजता था मन में खुशी की लहर दौड़ने लगती थी।इसी तरह एक स्टेशन था सेमापुर। कटिहार से ठीक पहले आता था ये स्टेशन और अक्सर यहां लंबे मार्ग की ट्रेनें भी रोक दी जाती थी। उसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि कटिहार एक बड़ा जंक्शन था और वहां ट्रेनों को मार्ग देने या फिर उसे व्यवस्थित करने के लिए सेमापुर में ट्रेनों को रोकना पड़ता था। एक बार मैंने इस स्टेशन से एक कुत्ते के पैर को ट्रेन से कटते हुए भी देखा था।
बहरहाल बेगूसराय से कटिहार के बीच यूं तो बहुत सारे स्टेशन हैं लेकिन सेमापुर की यादें हमेशा आती है क्योंकि यहां ट्रेन में पड़े-पडे़ सिग्नल होने का इंतजार करने और फिर आपस में दुनिया भर के आकलन जैसे कि शायद अवध आ रही होगी या राजधानी पास हो रही होगी...वगैरह-वगैरह याद आते हैं।इन दो स्टेशनों की याद तब खासकर आती है जब मैं किसी लंबी रेल यात्रा कर रहा होता हूं और ट्रेन किसी छोटे स्टेशन पर काफी देर तक रूकी रह जाती है। इन दो स्टेशनों के अलावा उमेश नगर और लाखो में वैसे ही स्टेशन हैं जहां से इस तरह की यादें जुड़ी हुई हैं।
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