तमसो मा ज्योतिर्गमय
हालांकि उस रात को कटे दस दिन हो गये लेकिन फिर भी उसकी दहशत ऐसी है कि लगता है उसकी पुनरावृति कभी भी आगे हो सकती है! कितना मुश्किल होता है भरोसे की नींव को हिलते हुए देखना और फिर खुद को समझा बुझा कर चीजों के पहले की तरह हो जाने की कोशिश करना।
ऐसा क्यूं हुआ इसकी सीधी सी वजह जो दिखती है वह है अप्रत्याशित आजादी के साथ अचानक आई तन्हाई। खुशी हो तो कोई साथ बांटने के लिए भी होनी चाहिए। जिस बात की सबसे ज्यादा आशंका थी वह थी 2016 की पुनरावृत्ति की। अनुभव यही बताता है कि सुनी हुई चीजें उतनी असरदार नहीं होती है जितनी कि आंखों से देखी हुई चीजें। देखी हुई चीजें ऐसा भेदती है कि उसका फिर इलाज किसी मलहम से नहीं होता। ओवरथिंकिंग की एक अनवरत प्रक्रिया शुरू होती है और बस वह चलती ही जाती है, चलती ही जाती है।
मैं वापस सुबह की पूजा शुरू करूंगी। यह एक ऐसा वाक्य था जिसने उस तूफान को बहुत हद तक थाम दिया। ईश्वर अंधेरे से आगे ले चले, उजाले की ओर। अब और कितना इंतजार!
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