Sunday, February 18, 2024

उस उम्र का मोती

 

                                                       साबुदाना

भाग्य के बिहार गये तीन महीने हो गये। घर में कई चीजें अब भी वैसे ही पड़ी है जैसे थी। कई ऐसी चीजें जो सिर्फ वही काम में लाती थी। चावल, दाल, आटा, नमक, तेल, मसाले सहित कुछ और चीजों को छोड़ दें तो सच में किचन में काफी चीजें यूं ही पड़ी हुई है। इनमें से ही एक चीज है साबुदाना।

आज सुबह साबुदाने का वह पैकेट देखा तो अपना बचपन याद आ गया। सुबह इतनी व्यस्तता रहती है कि ज्यादा गहरे में जाने का कभी-कभी मन करता है तब भी नहीं जा पाता लेकिन सोचा था कि रविवार के स्तंभ में कुछ लिखूंगा।

दरअसल बचपन से साबुदाने का दो उपयोग घर में देखा है। एक तो पापाजी और मां एकादशी में साबुदाना खाया करते थे। दरअसल उपवास में साबुदाने का खाना मान्य रहता है। ऐसा क्यूं है पता नहीं। मुझे तो यह भी नहीं पता कि साबुदाना बनता कैसे है! बहरहाल जो दूसरा उपयोग साबुदाने का देखा था वह ज्यादा याद आता है। पतंगवाजी में साबुदाने की बहुत अहम भूमिका थी। पतंग उड़ाने में जिस धागे का इस्तेमाल होता था उसपर माझा चढ़ाने के लिए साबुदाने का ही इस्तेमाल होता था। हालांकि फेवीकोल, गोंद, आरारोट, अंडा वगैरह का भी नाम तब खूब चर्चा में रहता था लेकिन साबुदाने वाला मांझा करने का अपना अच्छा अनुभव भी हुआ था। शीशे को कूट-कूट कर फटी धोती से एकदम चालकर और फिर साबुदाने में मिलाकर एक लटाएंग से दूसरे लटाएंग में धागा तो उस लट्ठे से होकर गुजारा जाता था। बड़ा ही मजेदार काम था और उसके लिए दो-तीन दिनों की भरसक तैयारी की जाती थी। मुझे याद करते हुए अच्छा लग रहा है कि मरकरी का जुगाड़ भी हमलोग करते थे। दरअसल मरकरी का जुगाड़ शीशे के लिए किया जाता था। उसे ही तोड़-तोड़कर कूटा जाता था। एकदम मैदा जैसा होने के बाद जिस दिन हवा हो और धूप भी थोड़ी कड़ी हो उस दिन हमलोग मांझा करते थे ताकि गुड्डी को उड़ाकर उसे दूर धूप में भेजकर मांझा सुखाया जा सके। फिर इस बात का भी ध्यान रखा जाता था कि उस दिन गुड्डी किसी से लड़े नहीं क्यूंकि गीला धागा का असर खास नहीं होता था। इसके लिए एक तरीका यह भी अपनाया जाता था कि घर से दूर खेत में जाकर गुड्डी उड़ाई जाती थी ताकि वहां गुड्डी के किसी से लड़ने का डर न रहे।

अपने करियर को देखता हूं तो जो भी असफलताएं ध्यान में आती है उसको लेकर सोचने लगता हूं कि अगर बचपन में इतना समय इनसब चीजों पर नहीं खत्म करके पढ़ाई में किया होता तो शायद मैं और अच्छी जगह पर होता। फिर उदास होने लगता हूं। पता नहीं क्या सही किया और क्या गलत किया। बहरहाल, साबुदाने पर बस इतनी ही बात!


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गूगल से ली गई एक तस्वीर मांझा की



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