Monday, February 5, 2024

एक बुझा हुआ दीपक

 

                                                      समय का प्रतिशोध

उस बात को छह साल से ज्यादा हो गये। व्यवहार एक ऐसी चीज है जो कभी-कभी लंबे समय तक याद रह जाती है। कई बार तो ऐसा होता है कि किसी का अच्छा व्यवहार याद करके मन खुश हो जाता है और किसी का खुर्द व्यवहार यद करके आदमी अपनेआप में भी बड़बड़ाने लगता है।

हमदोनों माता-पिता बनने वाले थे और हम समय-बेसमय घूमते रहते थे। घूमना हमदोनों को ही पसंद था। एक बार हमदोनों स्कूटी से ऐसे ही घूमते हुए प्रभादेवी की तरफ से गुजरे तो दीपक सिनेमा में लगे किसी अंग्रेजी एक्शन फिल्म के पोस्टर पर नजर पड़ी। अंदर का माहौल बहुत सकारात्मक नहीं लग रहा था। सिक्युरिटी चेक के दौरान एक छोटे डब्बे में ब्रेड जैम और सेब मिला तो सिक्युरिटी ने उसे वहीं निकालकर बगल में रख दिया। भाग्य की प्रेगनेंसी दिख रही थी बावजूद मैंने सिक्युरिटी को मनाने की कोशिश की। सारी कोशिशें बेकार गई और सिक्युरिटी इतना अड़ियल रूख पर रहा कि हमें वे ब्रेड वहीं छोड़ना पड़ा और फिर हम अंदर जाकर फिल्म देखने गये। दरअसल भाग्य थोड़े-थोड़े समय पर सिके हुए ब्रेड खाती थी क्योंकि बाहर का खाना से हम दोनों ही परहेज करते थे। उल्टियों का समय कभी भी शुरू हो जाता था। खैर, फिल्म देखकर हमलोग निकले और वह लंच बॉक्स समेट कर वापस वहां से निकल गये। निकलते हुए पैर में अजीब सा भारीपन था। मन कचोट रहा था कि सिक्युरिटी के बर्ताव के कारण भाग्य को फिल्म के दौरान समझौता करना पड़ा। खैर, हम दोनों वहां से निकले और मैंने तब ही तय कर लिया था कि पलट कर कभी दीपक सिनेमा नहीं जाऊंगा।

आज उस घटना को छह साल से ज्यादा हो गये हैं। रोज दफ्तर के लिए बस लेता हूं तो दीपक सिनेमा को देखता हूं। अब दीपक बुझ चुका है। कोविड ने उस सिनेमाहॉल को बर्बाद कर दिया शायद। हो सकता है कि सिक्युरिटी और स्टाफ के बर्ताव के कारण भी लोगों ने वहां जाना कम कर दिया हो या फिर किसी की बददुआ ने अपना असर दिखाया हो। बहरहाल, कारण जो भी हो, अब दीपक सिनेमा एक जर्जर इमारत जैसा दिखता है जहां सन्नाटा पसरा हुआ है। यह सन्नाटा मैं रोज देखता हूं बस की खिड़कियों से और रोज सुकून महसूस करता हूं।

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                                                               मोबाईल से ली गई फोटो।


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