Sunday, October 22, 2023

सरकारी नौकरी


                                            एक चमत्कार का गवाह बनना!

22 अक्टूबर की मध्य रात्रि यादगार बन गई। टुकड़ों में चमत्कार होना शुरू हो गया और यह पहला चमत्कार रहा। भाग्य बीपीएससी-प्लस टू टीचर के लिए आयोजित प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई। इसे ऐसे लिखता हूं कि भाग्य ने वह कर दिखाया जिसको लेकर वह पिछले कुछ सालों से एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए थी। फिर मजा नहीं आया, इसे ऐसे लिखता हूं कि भाग्य का चयन बीपीएससी ने हाईअर सेकंड्री टीचर के लिए कर लिया है और हम सब अब बच्चों के भविष्य को लेकर थोड़ा निश्चिंत हो गए।

2013-2014 के दौरान मैंने कई लोगों को कहा था कि सुबह तब नहीं होती जब अंधेरा होता है, सुबह तब होती है जब तीसरा पहर आता है यानि कि घुप्प अंधेरा और कहीं कुछ थाह नहीं लगता। सन्नाटा पसरा होता है और लगता है कि दूर-दूर तक कहीं कोई रोशनी या किरण नहीं है। रात अपने चरम पर होती है तब जाकर पौ फटता है। तब मैंने ऐसा कहना इसलिए शुरू किया था क्योंकि दूरदर्शन में मेरा होना उस वक्त का सूर्योदय ही था। मैं हर जगह से सारी उम्मीदें हार कर बैठ गया था। तब जाकर अचानक दूरदर्शन मुंबई में मेरा चयन हो गया था।

इसी तरह भाग्य और हम पिछले दिनों जिस तीसरे पहर को जी रहे थे उसे वर्णित किया जाना बहुत ही कठिन है। हर तरफ नाउम्मीदी, भविष्य की डरा देने वाली अनिश्चितताएं, किसी तरह के सहारे का कहीं नहीं दिखना और रोज तरह-तरह की अप्रत्याशित चुनौतियों से पाला पड़ना।

देर रात गन्नू का रोना जारी था। उसकी तबियत ठीक नहीं थी। आखिरकार देर रात दो बजे नींद खुल ही गई और मैं एकदम चिढ़ते हुए यह सोचकर उठा कि शायद सुबह हो गई। फिर देखा तो घड़ी में दो ही बजे थे, जान में जान आई कि सोने के लिए अभी भी कुछ घंटे बाकी हैं। गन्नू का रोना रूक-रूक कर जारी था और उसे दिन में बुखार भी था। जय महादेव बिस्तर पे उठा और नीचे उतर कर सीधा अंदर के कमरे में गया तो अजीब दृश्य था। गन्नू रो रहा था और भाग्य मोबाईल को बहुत परेशान होकर देख रही थी। उसकी स्थिति पिछले कुछ दिन-रात से मैं देख रहा था और उसका तनाव भांपकर उसे कुछ नहीं कहा बस गन्नू को पुचकारने लगा।

थोड़ी देर में गन्नू शांत हुआ तो मैं वापस बाहर के कमरे में आया ही था कि भाग्य करीब-करीब रोते हुए मेरे पीछे आई। मैं उसे देखा तो उसके पास गया। वह बोलती जा रही थी...देखो न एक लिस्ट आया है इसमें मेरा नाम है..नाम है मेरा...देखो न एक बार...मैंने उसके हाथ से मोबाईल लिया...जगदेश कुमार से नाम शुरू था और बहुत नीचे जाकर उसका नाम भी था। हमलोग अजीब मानसिक स्थिति में थे। उसके बारे में लिखा नहीं जा सकता बस कोशिश करके इतनी बात लिखी जा सकती है कि हमें लगा कि अब हम उबरने वाले हैं। एक सुबह बालकनी के बाहर होने वाली थी और एक उस कमरे में हो रही थी।

रात के करीब तीन बज गए थे। गन्नू सो गया और तन्वी पहले से सो रही थी। हम दोनों ने दरवाजा बाहर से बंद किया और सीधा नीचे भागे। पास के मैदान में दांडिया का आयोजन हुआ था और वहीं शायद दुर्गा जी की मुर्ती भी स्थापित की गई थी। अष्टमी का दिन शुरू होने वाला था। हम दोनों सीधे वहां गये और बस मां को निहारते रह गये।

वैष्णो देवी, बाबुलनाथ मंदिर, हनुमान संकल्प और न जाने क्या-क्या करके हमलोगों ने ईश्वर से विनती की थी कि हमारे बुरे कर्मों की सजा से हमें बचा लिया जाए क्योंकि हमें अगर और सजा दी गई तो हम सह नहीं पाएंगे। हमलोग बहुत बुरी परिस्थिति में थे। पापाजी और बड़ी दीदी को फोनकर थोड़ी देर में जानकारी दी गई और फिर एक औपचारिक मैसेज घर वाले वाट्सएप ग्रुप में डाल दिया मैंने, भाग्य की तस्वीर के साथ।

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