Monday, October 16, 2023

समय से संवाद

 

                                               इस पल की गूंज बर्दाश्त नहीं होती!

कितना कुछ टिका हुआ है आज शाम के छह बजे पर! घोर अनिश्चितता और भय से भरी हुई जिंदगी में अंधेरा छंट सकता है, रोशनी आ सकती है, आवाज हो सकती है, ऊर्जा और आत्मविश्वास के नए अध्याय का संचार हो सकता है, खोई प्रतिष्ठा का कुछ हिस्सा मिल सकता है, कलंक कमजोर पर सकता है, मां-पापाजी के आंखों की रोशनी लौट सकती है, ईश्वर पर भरोसा प्रगाढ हो सकता है और एक बोझ उतर सकता है!

जिस तरह अपनी प्रेमिका की शादी को गलती से देख लिया कोई दीवाना उसके बाद किसी शादी की शहनाई को सुनकर रुआंसा हो जाता है, छटपटाने लगता है या सदमे में जाने लगता है वैसा ही प्रतियोगी परीक्षाओं की वेबसाईट देखकर मेरे साथ होता है। यह घटना 2 मई 2019 से शुरू हुई थी और अबतक चल रही है। यह डर दिन-ब-दिन बढ़ता ही गया। हो सकता है कि भाग्य के परीक्षा परिणाम अगर अच्छे आ जाते हैं और उसे सरकारी नौकरी मिल जाती है तो मैं बिहार लोकसेवा आयोग के नाम से शायद डरना बंद कर दूं और यह भी संभव है कि मोबाईल पर आई पीडीएफ और वर्ड फॉर्मेट के दस्तावेजों में मुझे अपनी असफलता की छवि दिखनी बंद हो जाए।

लोन लेकर घर, भाग्य को कार, घर में सत्यनारायण भगवान की कथा, पटना में पापाजी-मां तक मिठाई का डब्बा और बड़की दीदी से कई दिनों तक रूकी बातचीत शुरू हो सकती है। यह अलग बात है कि जो कुंठा मेरी असफलता को लेकर मेरे मन में घर की हुई है उसे हवा होने में अभी भी बहुत वक्त लगेगा लेकिन एक तरह की जमानत का रास्ता तो साफ हो ही जाएगा। फिर कामोठे में रहना मजबूरी नहीं रहेगी, परिस्थितिजन्य होगा फिर सबकुछ। लोकल में चार घंटे का थका देने वाला रोज-रोज का धक्का, बस स्टॉप की लंबी कतार, दफ्तर में जलीकटी सुनना, भाग्य को लेकर हाऊसवाईफ का तमगा...ये सब मजबूरी नहीं होगी, स्थितिजन्य होगी।

छठ हो सकेगा, दुर्गापूजा भी हो सकेगा, दिवाली में वैसी किल्लत नहीं होगी और बुढ़ापे को लेकर जो अशांति, भय और अनिश्चितता है वह काफी कम हो सकेगी। रास्ता कहीं जाता हुआ दिखेगा और लोग भी शायद मदद के लिए आगे आएं।

आर्थिक तंगी में जो पूजापाठ नहीं हो पाया था, वह शायद हो पाएगा। भाग्य का मनोबल बढ़ेगा। क्या पता मुझे भी थोड़ी-बहुत इज्जत मिल जाए। मुझे संभालने में लगे रहने के कारण वह कुछ नहीं कर पाई का जो भार मेरे सर पर बहुत समय से है वह कम हो जाएगा। उसके बैंक खाते में हजारों रुपये देखकर जो उसके चेहरे पर रौनक आएगी उस चेहरे को देखकर शायद मुझे लगे कि ईश्वर में मेरे हिस्से के दुख में उसे साझीदार नहीं बनाया। अबतक तो ऐसा ही लगता रहा है कि मेरा शापित होना उसे भी सुख में रहने नहीं दे रहा है।

उसकी मेहनत का ईनाम उसे मिलना चाहिए। देर रात कई बार उसे पढ़ते-पढ़ते सो जाते देखा। उसका वजन कम होते देखा, आंखों के नीचे काले घेरे को देखा और उसका चिड़चिड़ापन देखा। टूटे मोबाईल के स्क्रीन पर आंख जमाकर जटिल प्रश्नो को सुलझाने में लगे उसके प्रयत्न को देखा और अपने दो हाथों से आठ हाथों का काम चुपचाप सबकुछ सहन करके उसे करते हुए भी देखा। उसने जीतोड़ मेहनत की। इतना, जितना कोई कर सकता है। इसके बाद भी अगर ईश्वर को उसपर रहम न आए तो फिर और क्या किया जाए!

पिताजी को मालूम है कि लक्की का भविष्य अंधकार में है। वह भलीभांति जानते हैं कि आगे के खर्चो को उठा सकने में उसका दम फूल जाएगा। ऐसे में अगर उन्हें सुकून वाली कोई खबर मिल जाए तो उससे बड़ी बात कुछ और हो ही नहीं सकती।

बाकी, ईश्वर ही जाने कितनी परीक्षा देनी बाकी है और कितने पुराने पाप-पुण्यों का हिसाब बाकी है।


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और अंत में...

भाग्य-अहोभाग्य...


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