Sunday, October 15, 2023

कम समय में लिखा

 

                                                  बुआ के नाम खुला खत

प्रिय बुआ,

तुम्हारे साथ गहरी सहानुभूति है। तुम्हारी विवशता देखकर मन कठोर रूप से द्रवित है। तुम जब केईएम, सायन और अलग-अलग अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे तब कई बार तुमको देखने और मिलने का मन किया था लेकिन मैं आ नहीं पाया। जब तुमने ऑफिस आकर कहा कि मिलने नहीं आया तो मैं अंदर ही अंदर बहुत शर्मिंदा हुआ। कुछ भी कारण बताना एक बहाना ही होता लेकिन सच यही था कि कोशिशें करने के बाद भी मैं तुमसे नहीं मिल पा रहा था। मैं तुम्हारे पैर छूकर तुमसे माफी मांगना चाहता था लेकिन उस माफी का तुम क्या करते!

परसों जब तुम बसंत स्मृति में अपना हाल बता रहे थे तो मैं अपना धैर्य खोता जा रहा था। कैसे तुमने अपनी पत्नी के आभूषणों को बेचकर अस्पताल का चक्कर लगाया, कैसे तुम्हें पांगे ने छला, कैसे तुम्हारे बेटे ने तुम्हें एक बार कहा कि पापा रिपोर्टर लोग इधर से जा रहे थे, कैसे तुम्हारा बचपन बीता, 1988 में तुम्हारे पापा की मौत के बाद कैसे जारी जवाबदेही तुमपर आई और 99 के बाद से तुम कैमरा का काम शुरू किये, कैसे तुम सोने की फैक्टरी में काम करते थे जहां तुम्हारा हाथ भी जल गया, तुमने जले के निशान भी दिखाए, कैसे तुम अपनी पत्नी को साड़ी नहीं दे पाने की कसक के साथ जी रहे हो और कैसे तुमने आत्महत्या के बारे में कई बार सोचा लेकिन फिर यह सोचकर कि तुम्हारी अनपढ पत्नी को कहीं किसी के जूठे बरतन धोने होंगे ये सोचकर और अपने बेटे का मुंह देखकर तुमने आत्महत्या करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और कैसे दूरदर्शन के अधिकारियों ने भी तुम्हें बस उम्मीदें दी और सही अर्थों में कुछ नहीं किया! जब तुमने कहा कि अब खाने के मन नहीं करता तो मुझे लगा कि तुम अति के पास हो। जब तुम कह रहे थे कि मैं पहले भर-भर कर भात दाल, रोटी खाता था लेकिन अब नहीं खा पाता तो मैं तुम्हारे कम हुए शरीर को देख रहा था। 

मुझे नहीं याद कि मैंने तुम्हारे साथ सबसे पहले कौन सा कवरेज किया था लेकिन मुझे ठीक-ठीक याद है कि समय के साथ तुम मेरे लिए सबसे भरोसेमंद कैमरामैन हो गए थे। तुम्हारे अंदर ईमानदारी थी। मेहनती तो तुम थे ही साथ में तुम रास्ता निकालना भी बखूबी जानते थे। कामचोरी तुम्हें कभी छू नहीं पाई थी। कई बार जब मैं तुम्हारे साथ किसी असाइनमेंट पर होता था तो सोचता था कि यहां से निकलकर तुम्हारे बारे में कुछ लिखूंगा लेकिन इस बार मुझे लगा कि तुम्हारे बारे में लिखने से महत्वपूर्ण कोई भी और काम नहीं हो सकता है। 

सभी स्ट्रिंगर्स को लगता था कि तुम मेरे सबसे करीब हो। कोर्ट के उतने सारे असाइनमेंट हों या ईडी ऑफिस में दिनभर का काम, तुम्ही तुम हर जगह रहते थे और रहोगे, जबतक दूरदर्शन में तुम हो। एक बार जब बोडके सर ने गुस्से में तुम्हारी नौकरी खा लेने की बात कही थी तब मैंने यह बात पंतोडे सर को बताया था और उन्होंने अपनी कुर्सी पर हाथ दबाते हुए कहा था कि जबतक मैं यहां हूं कोई नहीं जाएगा।

बुआ, तुम्हारी वजह से बांद्रा के एक महाविद्यालय में मुझे बतौर जूरी मेंमर बनने का मौका मिला था और वहां इसके लिए ढाई हजार रुपये भी मिले थे। तुम्हारे इस तरह के कई छोटे-मोटे उपकार हैं मुझपर।

तुम उन गिनेचुने लोगों में रहोगे हरदम जिन्हें मैंने हमेशा पसंद किया। 


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और अंत में...

सौजन्य : प्रमोद शर्मा, एएनआई, जगह :वसंत स्मृति भाजपा कार्यालय



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