Friday, October 13, 2023

एक और जीवनदान

                                         शनिवार और शनि की महादशा!

ट्रेन अगर धीरे नहीं करवाई जाती तो क्या होता? अगर दो डब्बों के बीच में आ जाता तो क्या होता? अगर प्लेटफॉर्म और ट्रेन के फर्श के बीच की दूरी थोड़ी अधिक होती तो!! ऐसे सवाल घूमते हुए दिमाग में जो झटके लग रहे हैं वह बहुत डरावने हैं। एक सदमा है जो बाकी अनगिनत सदमों की तरह समय के साथ भले ही भुला जाएगा लेकिन रनानुबंध! क्या पता अर्थी पर चढ़ने से पहले यह घटना आंखों के सामने से गुजरे और एहसास हो कि मुझे अकाल मृत्यु से बचाया गया!

8:03 की मानसरोवर वाली लोकल का आखिरी दो-तीन डब्बा गुजर रहा था। बीकेसी जल्द से जल्द पहुंचने का दबाव था क्योंकि प्रधानमंत्री का एक कार्यक्रम था शाम में और दिनभर ओलंपिक कमेटी की बैठक चलने वाली थी। खेलमंत्री अनुराग ठाकुर, सूचना और प्रसारण मंत्री भी हैं तो दबाव इतना था कि करीब चालीस-पचास की रफ्तार को पार कर गई लोकल की ओर मैं लपका। उतना तेज दौड़ना नहीं हो पाया सो मैं लड़खड़ा कर गिरा और घसीटता हुआ जाने लगा। दो अच्छी चीज हुई - पहली यह कि सबने चिल्लाया और सतर्क गार्ड ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दी तो ट्रेन थम होने लगी दूसरा यह कि अंदर वालों ने खींचा। डब्बे के अंदर आने पर मैं इतना शर्मिंदा था कि किसी से आंख तक नहीं मिला पा रहा था। मन में आ रहा था कि अगले स्टेशन पर इस डब्बे से उतरकर दूसरे डब्बे में चले जाऊं लेकिन मन अपराधबोध से भरा हुआ था। 

बहरहाल, जीटीबी नगर उतरकर गार्ड के डब्बे के पास जाकर उसका धन्यवाद किया और कहा कि अच्छा हुआ कि आपने गाड़ी धीमी करवा दी। पलट पर दो-तीन कदम बढ़ाया था कि एक आदमी ने कहा कि आपका दिन अच्छा है आज। उससे हाथ मिलाकर मैं आगे बढ़ गया। आगे।

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खरोंच जो इस जीवनदान का गवाह रहेगी



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