Friday, September 15, 2023

 जीना तब भी है और तब भी। पैंतीसवां के पार दो रास्ते जा रहे हैं। पहला जो ताउम्र ज़िल्लत भरा दिखाई पड़ता है, जहां रहने को हवादार कमरा और पीने के लिए पर्याप्त साफ पानी की किल्लत है, जहां सुबह-शाम को देख पाना मयस्सर नहीं है और जहां आज़ादी जैसे कोई चीज़ नहीं है, लेकिन वहां है ढ़ेर सारा ग्लैमर, ब्रांड, प्यार, पहुंच और वह सबकुछ जिससे अब मन उब चुका है। दूसरी तरफ है रोशनदान वाले कमरे की दोपहर, जहां एक भविष्य है जो उम्मीदों और संभावनाओं से भरा है। जहां नाम नहीं है लेकिन वजूद है। आवाज़ है और गूंज भी!


मुंबई और नवी मुंबई का द्वंद्व और कबतक चलेगा! बीपीएससी-शिक्षक का परीक्षा परिणाम कुछ और दिनों के लिए टल गया। उम्मीद थी कि सितंबर में परिणाम जारी हो जाएगा लेकिन अब अक्टूबर अंत तक उम्मीद है। कितना कुछ टिका हुआ है इसपर!


एक सीधी उम्मीद की रेखा है। भाग्य की स्थाई नौकरी उसके मनोबल को उठाएगी और उसके उठे मनोबल से उठता जाएगा आत्मविश्वास मेरा जो पिछले चार-पांच सालों से गिरता जा रहा है। फिर? फिर शायद मैं बड़ा वकील और भाग्य बड़ी शिक्षिका बन जाए और हमारे बच्चे नाम रोशन कर दें। 


दूसरी रेखा घोर नाउम्मीदी की है! उसके बारे में क्या बात करना, देखते हैं क्या-क्या होना बाकी है।


जो होना ज़रूरी है वह है छठ। मैया चाहें तो होगा न चाहें तो किसका मजाल जो छठ करवा दे।




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