Saturday, September 16, 2023

सन्नाटे के बीच की

                                               

                                                                घुटन

ये बस, लोकल, खिड़की, टेबल, जूते, किचन, बालकनी, स्कूटी, किताबें...

ऐसा लगता है कि हर किसी चीज से कोई किरण निकल रही है जो नकारात्मकता से भरी हुई है। पूरी नेगेटिविटी से भरी किरणें आ-आकर मुझमें समाती जा रही हैं। ऐसा रातोंरात तो नहीं हुआ लेकिन हाल के दिनों में यह काफी सशक्त हुआ है।

खालीपन को जीना तब और मुश्किल हो जाता है जब आप संसाधनों से घिरे हुए हों और आपका किसी चीज पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं हो। मसलन आप बस स्टॉप तक जाएं लेकिन बस नहीं हो, बस आए तो इतनी ठस्स हो कि आप खड़े कसमसाते रहें और बस आगे जाकर जाम में फंस जाए। मसलन आप दफ्तर में यूं ही बैठे रहें और जब चलने को हों तो इतना सारा काम अचानक आ जाए कि आप फंस जाएं और टस से मस न हो पाएं, उसी दौरान घर से आपके लिए फोन आ जाए और आप द्वंद्व में पड़े रह जाएं। मसलन आप भाग-भाग के लोकल स्टेशन पर जाएं और वहां पता चले कि ट्रेन अभी आधे घंटे में आएगी और दुनिया भर की भीड़ स्टेशन पर जमा हो...!

खालीपन तब सुहाना होता है जब आप एकांत में निश्चिंत भाव से हों। आप वहां चिंतन कर सकते हैं, कुछ लिख सकते हैं, तकनीक से खुद को दूर रख सकते हैं जैसे कि मोबाईल बंद कर सकते हैं, ध्यान कर सकते हैं, रो सकते हैं...!

अपनी असफलता का बोझ लिए चलना दिन-ब-दिन इतना कठिन होता जा रहा है कि मंदिर-मंदिर का चक्कर लगाना एक नियमित दिनचर्या जैसा बन गया है। वैष्णो देवी के बाद बाबुलनाथ मंदिर और फिर न जाने आगे किस मंदिर की ओर मन खींचा जाए लेकिन बात अब भी बनती नहीं दिख रही है।

नेगेटिविटी की सबसे बुरी बात यह है कि हर अच्छाई में कुछ बड़ी बुराइयां दिखाई दे जाती हैं और अच्छाई को लेकर होने वाली खुशी हवा हो जाती है। मसलन अगर भाग्य को बिहार में सरकरी नौकरी लग जाती है तो यह चैन की बात होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि मेरी गुलामी खत्म हो जाएगी। गुलामी यानि जो मैं अभी कर रहा हूं। बायोमैट्रिक की जिंदगी से मैं बाहर आ जाऊंगा। त्यौहार की छुट्टियों के लिए हाथ-पैर मारने नहीं होंगे। बुढ़ापा का सोचना नहीं होगा। परिवार का एक बजट होगा और बच्चों में संस्कार भी अच्छे होंगे। लेकिन फिर मेरा क्या? अगर भाग्य की नियुक्ति पटना में हो गई तो वहां मैं क्या कर पाऊंगा? अच्छा तो यह होगा कि भाग्य की नियुक्ति पूर्णिया में हो जाए और मैं वहां वकालत में हाथ लगाकर कुछ कर पाऊं लेकिन क्या यह वैसा ही हो पाएगा जैसी कल्पना मैं कर रहा हूं!

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