Sunday, April 17, 2022

एक स्वीकारोक्ति

                                             परदे में रहने दो परदा न उठाओ

आशा भोसले से यह दूसरी मुलाकात थी कुछ सालों पहले जब उनको कोई अवार्ड मिला था तो उनके साक्षात्कार के लिए उनके आवास पर गया था उस दौरान कुछ तस्वीरें भी उनके साथ ली थी। 

कल उनको एक शिक्षण संस्थान के सिल्वर जुबली कार्यक्रम में शिरकत करते देखा तो उनसे हुई मुलाकात की यादें ताजा हो गईं।

कार्यक्रम में भाषण का दौर चला तो बारी आशा जी की भी आई। आशा जी को कहीं मंच पर सुनने का मेरा पहला अनुभव था। साक्षात्कार करना अलग बात होती है और किसी का उद्बोधन सुनना दूसरी बात होती है क्योंकि उसमें किसी तरह के हस्तक्षेप की गुंजाइश अमूमन नहीं होती है। 

आशा जी ने बोलना जिस तरीके से शुरू किया, मन बैठने लगा। एक अट्ठासी साल की महिला, जो विश्वविख्यात गायिका हों और जिन्हें बहुत सारे सम्मान मिले हुए हों, उनका अपनी उपलब्धियों पर अफसोस करना, स्तब्ध करने जैसी घटना थी जो उस वक्त घटित हो रही थी। 

'' आज जब बच्चों को स्कूलों में ऐसे पढ़ते देखते हैं तो हमें खुशी भी होती है और दुख भी होता है। दुख इस बात का होता है कि हमारे समय में हमें ऐसे स्कूल नहीं मिले और...''

जो बात उन्होंने इसके बाद बोली वह मन को थोड़ी देर के लिए व्याकुल सा कर गया।

'' हम बस सिंगर बनकर ही रह गये...''

हालांकि इसके बाद उन्होंने उन डॉक्टर्स डिग्री का जिक्र किया जो उन्हें अमरावती या अन्य विश्वविद्यालयों की तरफ से दिया गया था लेकिन जिस कसक को उन्होंने वहां सार्वजनिक किया उसने मन में जो बेचैनी पैदा की वह तत्काल थमने वाली नहीं थी।

अगर इतना नाम, पैसा, शोहरत के बाद भी कोई खुश नहीं है तो फिर बोलने के लिए क्या रह जाता है!

अफसोस, निराशा, कसक, पछतावा, कुंठा आदि को लेकर भी कोई उम्र भले लंबी जी ले लेकिन जिसे जीना कहते हैं वह कहां कर पाता है। कितना फर्क हो जाता है सफल होने और सफल दिखने में।

बहरहाल आशा जी की ख्वाईश उस संस्थान में पूरी कर दी और मंच पर उन्हें दीक्षांत समारोह में पहना जाने वाला एक रोब और कैप दिया गया जिसे उन्होंने मंच पर ही सबके सामने उछाला और दर्शक दीर्घा तालियों की आवाज से गूंज उठा लेकिन वह गूंज आशा जी की उस स्वीराकोक्ति से अधिक ऊंची नहीं जा पाई जो आशा जी ने मंच से कुछ समय पहले ही दिया था।

बहरहाल, कार्यक्रम में बीते जमाने की कलाकार पद्मिनी कोल्हापुरे को जब बोलने के लिए बुलाया गया तो उन्होंने जाहिर कर दिया कि आशा भोसले की बात उन्हें भी भेद गई है। कोल्हापुरे का आशा भोसले के साथ पारिवारिक संबंध है और आशा जी ने मंच से कहा भी था कि पद्मिनी के कहने पर ही वह यहां आईं। कोल्हापुरे ने बोलते हुए यह भी कहा कि आशा जी आप ये मत सोचिए कि आप बस सिंगर बनकर रह गईं बल्कि आप यह सोचिए कि आप सिंगर बनीं। इस वाक्य को जैसे लिखा गया है पढ़ने का लहजा उससे अलग करके ही इस वाक्य की गूढता तो समझा जा सकता है।

बहरहाल अठासी की उम्र लांघने जा रहीं आशा जी खुद को कितना ढाढस दे पाई होंगी वह सिर्फ वही बता पाएंगी लेकिन आशा जी ने वहां दर्शकदीर्घा में कई वैसे लोगों के दिल को जरूर छू लिया जो मन में कसक लिए जीते हैं और बीतते चले जाते हैं।

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All in these two images! Courtesy : Mrs Radhika Mehra, NES

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