Thursday, April 14, 2022

रफ्तार-ए-जिंदगी

 

                                                            वीरान!

लोगों का कम होना अचानक तो नहीं हुआ! 

ट्राइडेंट से लौटते हुए गाड़ी में इतना अकेला महसूस हुआ कि लगा कि गाड़ी से बाहर निकलकर चलना शुरू कर दूं। चलता आदमी किसी से टकरा सकता है। गाड़ी में बैठा आदमी भला किससे टकराएगा! 

मोबाईल में ढाई हजार से अधिक नंबर सेव हैं। जब भी डिलीट करना शुरू करता हूं घोर असमंजस में पड़ जाता हूं कि किसे हटा दूं या किसे रहने दूं। फैसले लेने में हर बार देर होती है और हारा हुआ योद्धा की तरह सर झुका कर मोबाइल एक तरह रखकर वापस खो जाता हूं। 

कभी गौर करता हूं तो ऐसा लगता है कि अगर कुछ लोगों को दोस्त बना भी लिया होता तो शायद ही वह इस वक्त उस काम आ पाते जिस काम के लिए किसी के न होने का मलाल है। बात। बात करनी है। उन विषयों के बारे में जो बहुत तेजी से अतीत होते जा रहे हैं। शांति वाली जिंदगी। तसल्ली वाला दौर। भागदौड़ से अलग पगडंडियों से गुजरती हुई हल्कीफुल्की जिंदगी। कहां है!

आप बहुत व्याकुल होकर भी धैर्य से सोचने के बाद किसी को फोन लगाईए और फिर वह फोन न ले तो उसके फोन न लेने का अफसोस उतना नहीं होगा जितनी कि इस बात की आशंका कि पता नहीं कब उसका कॉल बैक आ जाये। इतने मानसिक संतुलन की जरूरत पहले कभी नहीं थी जितनी आजकल है। 

कुल मिलाकर जिन तीन लोगों को बारी-बारी से फोन किया, वे तीनों ही व्यस्त मिले और तीसरे ने फोन रखने से पहले यह कह दिया कि ऑफिस से घर पहुंच कर फोन करते हैं। जैसा कि अनुभव और आशंका थी फोन बाद में नहीं आया।

कहां गये वो लोग! 

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