Sunday, April 10, 2022

बेल का जूस

                                              
                                                मां-पापाजी और विनय डॉक्टर

घर तब प्लास्तर नहीं हुआ था। खिड़कियों की छिटकली अक्सर खुली रहती थी और गली के बाहर आने जाने वाले लोगों की आवाज खिड़की से सीधे अंदर आती थी। कुल मिलाकर घर बिल्कुल ही खुला हुआ जैसा था। इतना कि जब रविवार को संगीत के गुरूजी आते थे तो हारमोनियम और तबला-डुग्गी की आवाज सुनकर कुछ बच्चे कौतुहलबस सीढ़ी पर चढ़कर देख लेते थे कि कमरे के अंदर संगीत की शिक्षा दी जा रही है।

देह गरम होना यानि बुखार होना। बुखार यानि विनय डॉक्टर। विनय डॉक्टर यानि रिक्शे की सवारी जो घर से होते हुए लोहियानगर ढाला पार करते हुए पोखर के किनारे वाले विनय डॉक्टर के यहां जाती थी। यह दो-चार महीने में एक बार होने वाला घटनाक्रम था। अंतराल कभी ज्यादा तो कभी कम होता था लेकिन जो बात सबसे अच्छी होती थी वह था बेल का जूस।

अपने बगीचे में बेल का बड़ा पेड़ था। मुन्नूजी प्रकरण के बाद घर की बिगड़ी को बनाने के लिए जो प्रयास किये गए उन्हीं में से एक प्रयास के तहत उस बेल के पेड़ को जड़ से काट दिया गया। उस बेल ने सैकड़ों बार हमलोगों को खुश होने का मौका दिया था लेकिन घर से गई एक खुशी ने बारी-बारी से घर की कई खुशियों को हमेशा के लिए खत्म कर दिया, बेल की बलि भी ऐसी ही एक घटना थी।

बहरहाल, जिस जूस की बात याद आती है वह अपने बगीचे के बेल की नहीं बल्कि उस बेल की है जो बेगूसराय जिला के निबंधन कार्यालय के सामने मिलता था। घर से बिनय डॉक्टर तक जाने का रास्ता निबंधन विभाग यानि कि रजिस्ट्री ऑफिस से होते हुए जाता था। वही रजिस्ट्री ऑफिस जहां पापा जी ने अपनी सरकारी नौकरी के अच्छे दिन गुजारे थे। मध्यवर्गीय परिवार में घर में आपात स्थिति के लिए नकदी शायद ही कभी पर्याप्त रहती है। कई बार ऐसा हुआ था कि खेलते हुए सर फुट गया हो या बहुत सारी उल्टियां होने लगी हों या फिर अचानक कुछ ऐसा होने लगा हो कि डॉक्टर के यहां ले जाना जरूरी हो गया हो। मां रॉकेट की रफ्तार में रिक्शा लाती और बिठा कर विनय डॉक्टर के यहां ले जाती। वह डॉक्टर एक तरीके से हमारे परमानेंट थे। पापाजी को स्थाई रिश्ते रखना पसंद था। जैसे राशन के लिए बाल्मिकी चाचा, टीवी की मरम्मत के लिए सब्जी बाजार का एक दुकान, चमड़े के काम के लिए सावित्री सिनेमा के पास के एक दुकान, स्टेशनरी के लिए  ज्ञान निकेतन वगैरह। 

रिक्शे पर चढ़कर जब विनय डॉक्टर की तरफ जाना होता तो जहां बीच में रिक्शा को मम्मी रजिस्ट्री ऑफिस के पास रूकवाती। किसी कर्मचारी के माध्यम से पापाजी तक संदेश भिजवाया जाता और पापाजी कामकाज छोड़कर बाहर आते। उनका आना, मां से बात करके स्थिति को समझना, जेब से रुपये निकाल कर देना...! 

"सर्वतीर्थमई माता सर्वदेवमय: पिता।"
माता सर्वतीर्थमई और पिता सर्वतीर्थ की तरह हैं, ऐसा पद्नपुराण सृष्टिखंड में कहा गया है।

विनय डॉक्टर से लौटते हुए सब वापस पापा जी को अपडेट दिया जाता तो पापाजी ऑफिस के बाहर बेल का जो जूस पिलाते थे वह स्वाद शायद इस जिंदगी के रहते जी से नहीं जाएगा।

आज भी जब बेगूसराय में नगर पालिका की तरफ जाना होता है तो जिला निबंधन विभाग के दफ्तर के बाहर से गुजरते हुए लगता है कि वही दौर वापस आ जाए और पिताजी तब की ही तरह दिखने लगें और मां के अंदर भी वैसी ही फुर्ती आ जाए!

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