Sunday, April 3, 2022

दुर्दशा

 

                                                        काजल की कोठली

गोवा चुनाव कवर करते हुए एक आईएएस का इंटरव्यू कर रहा था। इटरव्यू शुरू होने को था कि एक अधेड़ सा दिखने वाला आदमी धीमी कदमों से अंदर आया। गाड़ी का कुछ काम के बारे में उसने बात की और फिर खाने के लिए जाने संबंधी कुछ बात कही। बात को सुनकर ऐसा लग रहा था कि अपने ऑफिस से किसी असाइनमेंट पर निकल रहा हूं और ड्राइवर ने बोला है कि उसने अभी तक खाया नहीं है!

कामचोरी के अनुभव हमसब लोगों ने कभी न कभी जरूर लिया है। सरकारी मशीनरी में काम करते हुए कामचोरी का अनुभव प्रचुर मात्रा में मिलता है और आदमी न चाहे तो भी हफ्ते में दो-तीन बार यह जरूर सोचता है कि काश ये आदमी ऐसा नहीं होता!

लेकिन आईएएस!

कुल मिलाकर यूपीएससी की तरफ से दी जाने वाली बहालियों में आईएफएस को छोड़ दिया जाये तो बाकी की सभी सेवाएं आदमी को उस नरक में रखती हैं जो सिस्टम के कारण बना होता है। यानि कि आपका रुतवा अपनी जगह, आपको जिनसे काम करवाना है वह अपनी जगह। एक आदमी का आईएएस बनना पूरे सिस्टम को आईएएस नहीं बनाता न ही उन लोगों को जिनके साथ उस आईएएस को काम करना पड़ता है।

हालांकि आईएफएस की बात यहां अलग हो जाती है क्योंकि वह इस नरक से ही निजात पा जाता है।

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