अजय पाटिल का न होना!
अजय पाटिल के बिना यह पहला नासिक दौरा था। नासिक घुसते ही मुंबई नाके पर बस स्टैंड की तरफ हॉटल शाहदा देखा तो मन एकदम-सा रूआंसा हो गया। एक बार इसी हॉटल में दूरदर्शन की टीम ने खाया था और मेरे बहुत जिद करने पर भी अजय पाटिल ने मुझे रुपये देने नहीं दिए थे। नासिक की हर सड़क पर लगता रहा कि अजय की इयोन कार आगे चल रही है और हमारी कार उसको फ़ॉलो कर रही है। अमूमन ऐसा होता था कि हमलोग जहां ठहरते वहां वह अपनी कार और एक-दो बंदे के साथ आते और फिर दो गाड़ियां गंतव्य की तरफ निकलती जिसमें आगे उनकी गाड़ी होती थी। वह अक्सर अपनी गाड़ी में मुझे ले लेते और मेरी गाड़ी में अपने बंदे को बैठने बोल देते।
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एक चुनावी रैली में अजय पाटिल के साथ |
जितनी कमी मुझे अजय पाटिल की खल रही थी उतनी ही शैलेश को भी खल रही थी। नासिक पहुंचते ही उसने अजय पाटिल की याद दिलाई। उसे कहां मालूम कि मैं लगातार अजय पाटिल के बारे में ही सोचा जा रहा था।
कोविड ने उसकी जान ली या कोविड के दौरान अस्पताल की लापरवाही ने, यह रहस्य ही बना रहा क्योंकि अनिल वैद्य के मुताबिक वह ठीक थे और डोसा मंगवाकर खाया था लेकिन देर रात घरवालों को अस्पताल से फोन आया। बताते हैं कि उनके पास कोई लाश रखी थी! बात जो भी हो, अजय पाटिल उस रात के बाद बस एक नाम तक सिमट गये।
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और अंत में
नायक दीपचंद से सदिच्छा भेंट देवलाली प्लाजा के सामने।
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