उपकार
पिछले दिनों सर के रिटायर होने की जानकारी मिली। औपचारिक बातें करने की कला विकसित न कर पाने की वजह से उनको फोन करते-करते रह गया। कई बार कुछ खास मौकों पर क्या-क्या कहा जाये और कैसे कहा जाये यह बड़ा जटिल लगता है।
ड्राइविंग लाइसेंस, लॉ की पढ़ाई और अनगिनत आपात परिस्थितियों में बगैर किसी इफ-बट के छुट्टियों के आवेदन की स्वीकृति, जरूरी सरकारी दस्तावेज की उपलब्धता, लक्षद्वीप की यात्रा सहित न जाने कितनी ही चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में वह बतौर अभिभावक की तरह साथ खड़े रहते हुए असंभव चीजों को उन्होंने संभव बनाया था।
हालांकि उन्होंने करीब चार साल में अनगिनत छोटी-बड़ी मदद की थी लेकिन जिस मदद ने हमेशा के लिए मन से उनका आभारी बना दिया वह चालीस हजार रुपये की वह मदद थी जिसे चुकाने में मुझे कई साल लग गये।
शादी के बाद लॉ की पढ़ाई और भी चुनौतीपूर्ण हो चुकी थी। समय का प्रबंधन हमेशा ही कठिन रहा था मुंबई में। हालांकि दिल्ली का अनुभव होने के कारण कई बार व्यस्ततम दिनों में भी अपने लिए वक्त निकालना संभव हो पाता था लेकिन मुंबई में दूसरी मुश्किल थी। दिल्ली के किराये का कमरा मेरा अपना था लेकिन मुंबई के एंटोप हिल में मैं बतौर साझा किरायेदार था।
खैर, चैंबूर स्थित लॉ कॉलेज के लिए कुर्ला इस्ट में उतरना और फिर वहां से चालीस रुपये ऑटोवाले को देकर कॉलेज आना और फिर कॉलेज से ऑफिस आने के लिए वहां से करीब एक किलोमीटर चलते हुए सड़क पर आना और वहां बस स्टॉप पर खड़े होकर बस का इंतजार करना और फिर बस से कुर्ला स्टेशन आकर वहां से परेल आना और फिर परेल से शेयर टैक्सी लेकर वर्ली में दूरदर्शन दफ्तर आना रोज की बात थी। हालांकि लॉ को लेकर जो सनक थी उसके कारण ऊर्जा बरकरार रहती थी लेकिन सुबह से रात तक शरीर रोज टूटता और फिर अगले दिन नई सुबह मुंह बाए खड़ी रहती थी।
जरूरत थी एक मोटरसाइकिल की जो समय और पैसे की बचत कर दे। कई बार कॉलेज में क्लास के दौरान कहीं बिल्डिंग गिरने या आग लगने या फिर लाईव आने का आदेश उपर से आता तो बीच क्लास से कोई बहाना बनाकर भागना होता था ऐसे में बस स्टॉप पर बस का इंतजार करना चिड़चिड़ा बना देता था। कई बार चलते-चलते भी कुर्ला स्टेशन पहुंचना हुआ था। ऐसे में मोटरसाइकिल की नितांत आवश्यकता थी जो मुंबई में इधर से उधर जाने के लिए भरोसेमंद माध्यम हो।
काफी कोशिश करने के बाद भी मोटरसाइकिल के लिए रुपये नहीं हो पा रहे थे और शादी के बाद खर्चों को समेटना भी मुश्किल हो रहा था। इस बीच कई बार मोटरसाइकिल डीलर के यहां का चक्कर काट आया था जिससे यह साफ हो गया था कि चुनौती सिर्फ आर्थिक ही नहीं थी बल्कि तकनीकी भी थी। मसलन एंटोप हिल में जिस सरकारी क्वार्ट्रर में मैं रह रहा था वहां का कोई प्रमाण मेरे पास नहीं था और हो भी नहीं सकता था क्योंकि मैं वहां किराये पर रहता था और वहां किराये पर रहना अवैध था। ऐसे में गाड़ी अगर ले भी लिया जाये तो उसका पंजीयन कराना काफी मुश्किल था।
आखिरकार, सर को एक दिन फुर्सत में अपनी कशमकश की दास्तां सुना दी। चूंकि कुछ घटनाओं के कारण उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव हो गया था इसलिए बिना लाग-लपेट के उनके आर्थिक मदद की भी फरियाद कर दी। जैसा कि भरोसा था, उन्होंने बिना कुछ सवाल किये चालीस हजार रुपये का चैक उसी वक्त दे दिया। बाकी के तीस-पैंतीस हजार मेरे पास जमा थे। गाड़ी की कीमत हाथ में थी लेकिन गाड़ी खरीदने के लिए जो कागज चाहिए थे वह काफी प्रयास के बाद भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। तय हुआ कि दिल्ली से गाड़ी ली जाएगी, जहां के पते पर वोटिंग कार्ड से लेकर पासपोर्ट तक था।
वसंत के खुशनुमा माहौल के बीच आखिरकार 11 फरवरी 2017 को होंडा स्कूटी का मालिकाना हक आखिरकार दिल्ली में जाकर मिला। संयोग से मुगल गार्डन उसी दौरान आम लोगों के लिए खुला हुआ था। इसके अलावे ग्रेटर नोएडा स्थित अपने आवास में उस वक्त रघुनाथ सर भी थे। अपना आईआईएमसी तो था ही दिल्ली में। कुल मिलाकर दिल्ली का जमकर लुत्फ उठाते हुए अंत में स्कूटी को रेलवे को सौंप दिया गया जिसने उसे मुंबई तक पहुंचा दिया।
स्कूटी ने मुंबई में आ रही कई मुश्किलों का समाधान कर दिया।
सर रिटारर्ड हो गये लेकिन जो उपकार वह कर गये वह कभी भी रिटायर नहीं होगा।
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| एंटोप हिल में गाड़ी की सफाई |


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