Monday, March 9, 2020

                                   
                                                              एक त्रासदी

असामयिक मौत एक साथ कई मौत की तरह होती है। असामयिक मौत में भी जो मौत अचानक होती है वह एक त्रासदी की तरह होती है, जिससे उबरना एक पूरी पीढी के लिए नासूर की तरह होता है।

महाराष्ट्र विधानसभा के बजट सत्र के दौरान व्यस्तता आम दिनों से अधिक थी। फोन किसी का भी हो उसे ले लेना एक आदत सी ही है, अन्यथा उस थकावट में वह फोन शायद इग्नोर कर देता। लालू भैया दूसरी तरफ थे। उन्होंने बताया कि रूपक भैया एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हैं और किसी निजी अस्पताल में उनको भर्ती करवाया गया है। उनके अनुसार रूपक भैया को सर पर गहरी चोट लगी थी और आईसीयू में उन्हें विशेष निगरानी में रखा गया था। औपचारिक जानकारी के बाद जो सवाल बिना पूछे नहीं रहा गया वह था कि उनका बच्चा कितना बड़ा है!



काफी हाथ-पैर मारने के बाद भी मेरा पुणे जाना नहीं हो पाया और पुणे में जिस पत्रकार को मैंने उसी रात उस अस्पताल पहुंचने के लिए कहा उसे भी उसकी परिस्थितियों ने वहां जाने नहीं दिया। चीजें असामयिक हों तो महानगरों में उसकी तैयारी करने में जरा-सा वक्त तो लगता ही है। खैर!


दो दिनों पहले रूपक भैया के खत्म होने की खबर आ गई। छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल से महाराष्ट्र विधानसभा के लिए एक नंबर की बस लेने के लिए कतार में खड़े रहते हुए जब यह खबर मिली तो मन क्षुब्ध सा हो गया। किसी का यूं ही चले जाना इतना आसान कैसे हो सकता है! रूपक भैया का एक बेटा था जो शायद प्ले स्कूल में जाना शुरू किया था। याद है, बेगूसराय में वह अपने ग्रुप में शायद सबसे स्मार्ट दिखने वाले लड़के थे। पढ़ाई पुणे में की थी और फिर वहीं एक निजी मोबाईल कंपनी में नौकरी कर रहे थे। पढ़ाई, शादी, बच्चे सब ठीक ही चल रहा था कि अचानक इस हादसे ने उनका अस्तित्व ही खत्म कर दिया एक तरह से!

वक्त की रफ्तार कभी इतनी तेज होगी यह तो किसी ने भी नहीं सोचा होगा।

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