Monday, September 16, 2019

खामोशियां...

                                               
                                                    गुमनाम है कोई...!

नीलम शर्मा के निधन की खबर पर यकीन मुश्किल से हुआ। कॉलेज के दिनों में उनके एक शो में ऑडिएंस के बीच बैठकर सवाल करना और फिर बाद में उनके साथ कई बार लाइव रिपोर्टिंग करना, उनसे मिलना, दूरदर्शन के मुंबई गेस्ट हाऊस में ग्यारहवें तल उनके साथ जाना और उनके साथ काम करने वाले प्रोड्यूसर रमन हितकारी का किसी को फोन करके यह कहना कि यह कमरा रहने लायक नहीं है, वगैरह कई चीजें दिमाग में बारी बारी से घुमने लगी।

अप्रैल में जब चुनाव का कवरेज करने के दौरान अमरावती गया था तो बोरियत दूर करने के लिए संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में बैठने का निर्णय लिया ताकि पत्र पत्रिकाएं पढ़कर मन को बहलाया जा सके। अंदर की प्रक्रिया थोड़ी सरकारी थी। एक आवेदन देना और फिर उसपर हस्ताक्षर करना फिर उसे लेकर इधर से उधर जाना जैसा।

इसी बीच लाइब्रेरियन पर नजर पड़ी तो उनके केबिन में गया और अपना परिचय दिया। औपचारिकता के बाद उन्होंने जो पहला नाम लिया वह नीलम शर्मा का था। वह अचानक उस ब्लैक एंड व्हाइट दौर मं पहुंच गये जब दूरदर्शन ही एकमात्र चैनल हुआ करता था। उन्होंने नीलम शर्मा से जुड़ी स्क्रीन की कई यादें गिनाई। आलम यह हो गया कि मैंने नीलम शर्मा को वहीं से फोन कर दिया लेकिन पुस्तकालय में नेटवर्क न होने की वजह से मुझे उन्हें यह बताने के लिए परिसर में आना पड़ा कि महाराष्ट्र के विदर्भ के एक पुस्तकालय में मैं उनके एक प्रशंसक के सामने बैठा हूं। हालांकि मैं उस लाइब्रेरियन से उनकी बात तकनीकी कारणों से नहीं करवा पाया, जिसका खेद मुझे उस दिन के बाद भी रहा।

खैर, समय अपनी गति में चलता रहता है।

अलविदा नीलम शर्मा 
अब जब नीलम शर्मा राख हो चुकीं है जिंदगी के दर्शन को लकर मन में अचानक एक नई तरंग सक्रिय हो गई है। पिछले दिनों उनके साथ काम करने वाली एक एंकर मुंबई आई और खाना खाते हुए उसने बताया कि दफ्तर में भी किसी को नीलम शर्मा की बीमारी के बारे में जानकारी नहीं थी।

इसका एक मतलब साफ है कि दफ्तर में कोई भी उनके करीब नहीं रह पाया दशकों के उनके दफ्तर में उनके होने के बावजूद।

इस गोपनीयता का एक अपना दर्शन है। आदमी अपनी निजता को लेकर अतिरिक्त सतर्कता तभी बरतता है जब वह बाहरी दुनिया से किसी भी तरह की उम्मीद होनी बंद हो जाती है। खुद को किसी के साथ साझा करना अत्यंत ही जोखिम भरा काम है, खासकर महानगरों में काम करने वाली किसी महिला के लिए, जिसकी लोकप्रियता इतनी हो कि उसके निधन के बाद सारे समाचारपत्रों में खबर छपे और लोग सोशल मीडिया पर लंबी चौड़ी पोस्ट लिखकर उनके व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं का जिक्र करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कतारबद्ध हो जाएं।

नीलम शर्मा मरी नहीं हैं बल्कि गुम हो गई हैं। वह पहले भी गुम थीं, अब भी गुम हैं। कोई तो ऐसा व्यक्तित्व का पहलू उनका जरूर होगा जो उन्होंने शायद किसी से साझा नहीं किया वरना आज जब लोग रक्तदान करते हुए भी फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर डाल देते हैं, ऐसे में ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारी को जीते हुए एक संजीदा महिला भला कैसे बिना किसी को बताये कोई इस तरह कैसे मुख्यधारा से हाशिये की तरफ खिसकते हुए गायब हो सकता है।

बहरहाल, उनकी गुमनामी ही नया दौर है, जहां आज वह हैं, कल कोई और था और कल कोई और होगा।

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