Monday, August 5, 2019

जिसे जेहन भुलाना नहीं चाहता


                क्या देंगे हम अगली पीढी को

अर्थिंग में पानी देकर वोल्टेज बढ़ाने से लेकर एंटीना घुमाकर ब्लैक एंड व्हाईट टीवी में पिक्चर की गुणवत्ता सुधारने तक के उस दौर में कई ऐसी घटनाएं नियमित होती थीं जो शायद एक दौर के बाद स्मृतियों से ओझल होने लगेंगी।

कल जिसे कई जगह चापाकल कहा जाता था, अब कहां दिखती है! कहां दिखता है लैंडलाइन फोन जिसके तार दिवालों की खूंटियों से होते हुए फोन तक आते थे और कहां रहा वह रोमांच जो लैंडलाइन फोन के रिंग सुनकर आता था।

रेडियो का न अब वह एंटीना है जिसे तीन स्टेप में खींचकर लंबा करके ऊपर की तरफ किया जाता था और न ही फिलिप्स का वह टेपरिकॉर्डर है जिसमें एक कैसेट में ही कई तरह के गाने उलट-पुलट कर सुने जाते थे। एक तरफ का खत्म होने पर एजेक्ट करके कैसेट को बदलना और गाने की आवाज में गड़बड़ी होते ही उसे बंद करके फंसे रील को पेचकस से निकालकर ठीक करना, हेड को थूक लगाकर साफ करना और वापस गाना लगा देना।

आसपास के लड़कों का किसी के घर पर जुटना और कैरमबोर्ड खेलना, अब कहां हो पाता है! 

यह कैसा दौर आ गया है जहां इतना सूनापन और तनाव के बीच खुशी का नामोनिशान तक मिट चुका है। हर आदमी क्यूं झूठा लगता है और हर चीज क्यों संदिग्ध लगती है! क्यों किसी का फोन लेने से पहले खुद को मानसिक रूप से तैयार करने की जरूरत होने लगी है और क्यों किसी से कुछ साझा करने से पहले दिल बगावत पर उतरने लगा है!

अगली पीढ़ी के लिए खुशी का कोई ठिकाना खोजना इतना मुश्किल सा हो चुका है। घर में नया लैंडलाईन लगना, नए गैस कनेक्शन मिलना, नया टीवी आना, नया आलमीरा आना, नई साइकिल आना,पहली बार ट्रेन पर चढ़ना ये सब में जो खुशियां थी क्या नई पीढ़ी को वही खुशियां इन चीजों में उसी अनुपात में मिलेगी? क्या नई पीढ़ी को क्रिकेट खेलने के लिए पास में ग्राउंड मिलेगा! महानगरों में आसपास जगह नहीं होने के कारण घर के ऊपर घर चढ़ते जा रहे हैं, ऊपर तक भर जाने के बाद का क्या होगा? तबाही!

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