Wednesday, June 19, 2019


                                                      अलविदा प्रवीण!

कॉलेज के वाट्सएप ग्रुप के चैटबॉक्स में करीब तीन सौ मैसेज पड़े थे। सवेरे अचानक कई लोग एक साथ टाईप करते दिेखे, आमतौर पर ऐसा किसी के जन्मदिन या किसी त्यौहार में बधाई देते समय होता है जब सबलोग बारी-बारी से औपचारिकता निभाते हैं और इस क्रम में कुछ लोगों की टाईपिंग दूसरे से टकराती हुई भी दिखती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। प्रवीण द्विवेदी की मौत हो चुकी थी और उसी से जुड़े हुए चैट वहां हो रहे थे।

प्रवीण के फेसबुक पर किसी से खोजा तो कुछ दिनों पहले किया हुआ उसका एक पोस्ट दिखा।

                                    "नसीब का लिखा, वह लिखकर जिससे राफ्ता न हो,
                                    समुंदर तो समुंदर रहा पर साहिल अब साहिल न रहा।"

पढ़ते हुए ऐसा लगा कि प्रवीण इसे अपनी आवाज में सुना रहा हो और वहां दूर-दूर तक कोई नहीं हो। कल ही "द फॉल्ट इन आवर स्टार्स" फिल्म देखी थी। अगस्टस अपनी मौत से पहले एक बनावटी अंत्येष्टि आयोजित करता है और वहां अपनी तरह ही कैंसर से जूझ रहे दो दोस्तों को बताता है जिसमें से एक होती है हेजल, जो कि उसकी दोस्त बन जाती है और दोनों गहरे प्यार में पड़ जाते हैं। हेजल खुद भी कैंसर के बुरे दौर से गुजर रही होती है।

प्रवीण की जिंदगी में बाधाएं कॉलेज के समय से ही दिखनी लगी थी। वह एक पैर से विकलांग था। आमतौर पर वह आशुतोष मणि त्रिपाठी के साथ ही ज्यादा दिखता था और दोनों की अच्छी दोस्ती भी थी। आशुतोष अंदर का ठीक लड़का था हालांकि उन दोनों की दोस्ती की वजह का कभी पता नहीं चला।

प्रवीण द्विवेदी को प्यार से सब पीडी कहते थे। ग्रुप में भी उसके बीत जाने की खबर पीडी के नाम से ही आई, जो सबको बारी-बारी से चौंका गई। पिछले कुछ महीनों से वह बीमार था और डॉक्टरों से उसे ब्रेन टीवी का मरीज बताया था। मुश्किल से बत्तीस-तैंतीस की उम्र में आईआईएमसी बैच 2010-11 ने अपने एक जवान साथी को खो दिया। प्रवीण तीसरा है। प्रवीण से पहले सागर मिश्रा और अंशु सचदेवा अलग-अलग वजहों से आत्महत्या कर चुके हैं।

प्रवीण ने क्या जिया, कितना जिया, कबतक जिया यह सब उसके नजदीक रहने वाला ही कोई इंसान बता सकता है लेकिन प्रवीण जिस तरह से गया उसके पूरे बैच को और भी खाली कर दिया है।

एक वाक्या याद करते हुए आशुतोष बताता है कि उसके रूममेट ने एक नया किराये का कमरा देखा था जो चौथे फ्लोर पर था। प्रवीण से जब उसने पूछा तो वह खुशी-खुशी राजी हो गया। इतना ही नहीं कई बार चाय पीने के लिए वह झट से नीचे भी आ जाता था। यह सब तब था जब उसका एक पैर नकली था और उसे उतनी सीढियां चढ़ने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती थी। उसकी जिंदादिली के कई किस्से उसके साथ ही चले गये।


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