अपनी तरह का एक उसूलप्रिय अभिनेता
लिफ्ट से एक बार उनको निकलते देखा था तो मन अचानक रोमांचित हो गया। नजर बचाकर उन्हें पलट कर देखकर तसल्ली कर लेने के बाद अपने कमरे में आकर पता किया कि यह यहां क्या करने आये थे! मजेदार यह था कि जब मैं उनके बारे में पूछ रहा था तो मैं उनका नाम बताने के बताया उन फिल्मों का नाम बता रहा था जिसमें मैंने उन्हें देखा था!
2014 के किसी रोज उन्हें दफ्तर में यूं ही लिफ्ट से निकलते देखने और यह जानने के बाद कि वह दूरदर्शन सह्याद्री की स्टूडियो में अक्सर आया जाया करते हैं, मन में कई बार उनसे मिलकर यह बताने की इच्छा हुई कि “तुम बिन” में कराहते पिता का जो किरदार उन्होंने निभाया वह दिल को छू गया। करीब दस मिनट से भी कम के उस अभिनय में उन्होंने क्या असर छोड़ा था – “वेटा उसने कई बार बताने की कोशिश की”!
अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान के ग्लैमरस दौर में भी उनका व्यक्तित्व मुझे आकर्षत करता था। “हम दिल दे चुके सनम” में जिस पिता का उन्होंने अभिनय किया, वैसी सिद्धांतप्रिय मध्यवर्गीय पिता का अभिनय मैंने बाकी किसी अभिनेता को करते नहीं देखा था। यहां तक कि अमिताभ बच्चन ने जो पिता की भूमिका सूर्यवंशम में निभाई है वह भी कुछ पल के लिए नंदनी के पिता के सामने फीका लगता है।
मेरी ऐसी राय शायद इसलिए भी बनी हो कि मैंने वैसे पिता को अपने मुहल्ले में देखा और सुना था जैसे पिता की भूमिका करते उन्हें स्क्रीन पर देखा था।
कैबिनेट की मीटिंग चलने के कारण दफ्तर में वक्त ठहरा हुआ था। दरअसल मीटिंग हो चुकी थी बस रविशंकर प्रसाद प्रेस वार्ता के लिए आ नहीं पाए थे। कैबिनेट ने सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के संशोधन की मंजूरी दे दी थी जिसके तहत एंटी-पायरेसी कानून को मजबूत करके दोषियों को तीन साल की सजा और दस लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया था।
मुख्यालय का निर्देश था कि इस फैसले पर फिल्म से जुड़े शख्सियतों की प्रतिक्रिया ली जाये ताकि इस फैसले को स्वागतयोग्य बताने का अच्छा आधार तैयार हो जाए।
रडार पर अचानक विक्रम गोखले आ गये। एक शख्स जिससे बात करने की तमन्ना सालों से थी लेकिन मौका मिल नहीं पा रहा था।
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तस्वीर साभार : कमलाकर जगताप, दूरदर्शन कैमरामेन |
मैसेज से शुरू हुई बात फोन तक आई और फिर फोन पर अप्वाइंटमेंट तय हो गया। इंटरव्यू अच्छा रहा, उन्होंने ठोस और सधी हुई प्रतिक्रिया दी।
आमतौर पर किसी को यह बोलना कि आपके साथ तस्वीर लेना चाहता हूं, थोड़ा अजीब लगता है। बतौर दूरदर्शन के वरिष्ठ पत्रकार आपसे यह अपेक्षा नहीं की जाती है। वैसे भी इंटरव्यू में हम दोनों साथ ही रिकार्ड किये गये थे तो स्टील फोटो के लिए आग्रह करना और भी असहज करने वाली स्थिति पैदा कर रही थी। फिर भी मन का उत्साह बाहर आ गया।
सेल्फी लेने से जिस अंदाज में उन्होंने मना किया, वह अंदाज उनके बारे में मेरी उस सोच को पुष्ट कर गया जो मेरे मन में उनके प्रति थी। गंभीर आदमी पसंद रहा है मुझे और वह गंभीर ही हैं।
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और अंत में,
"एक बार मैं बाल मजदूरी पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रहा था। उन्हें मैंने दस सेकंड के क्लोजिंग एंकरिंग के लिए आग्रह किया और वह मान गये। पच्चीस हजार रुपये पर बात बनी। वह जब आये और जब जाने लगे तो उन्होंने रुपये लेने से इंकार कर दिया और पीठ थपथपाते हुए कहा कि तुम अच्छा काम कर रहे हो। फिर उन्होंने पान खिलाने के लिए कहकर अपनी गाड़ी में बिठा लिया।"
- कमलाकर जगताप, स्ट्रिंगर
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