Monday, January 7, 2019

माया


                                                भूले-बिसरे लोग

आसपास इतने लोगों को बारी-बारी से मरते देखना और सुनना दुनिया के एक दूसरे दर्शन की ओर ले जाता है। कुछ दिन पहले फोन पर घर बात करते हुए मालूम चला कि अगली गली वाली चाची शरीर छोड़ गईं।

कुछ महीने पहले रामाश्रय बाबू के देहांत की सूचना मिली थी। इसे क्या कहा जाये कि पिछले ही सप्ताह रामाश्रय बाबू सपने में आए और कुछ बातचीत की। नींद खुलने के बाद सबकुछ दिमाग से हवा हो गया। उनके साथ घनिष्टता थी। योद्धा की तरह उनका व्यक्तित्व था और जिन लोगों से अबतक मैं प्रभावित हुआ, उनमें से वह भी एक थे। उनके निधन से बेगूसराय का एक स्तंभ टूट सा गया था। जिले में जो जगह मेरे ठिकाने हुआ करते थे उनमें से एक उनका घर था, जहां मेरा अक्सर आना-जाना लगा रहता था। उनकी इच्छा थी कि मैं मुंबई में योगेश कामदार से मिलूं लेकिन वक्त के कारण मैं उनसे नहीं मिल पाया। खैर!

तीस पार करने के बाद पचास और करीब हो जाता है। तीस से पचास के बीच की जो जिंदगी है वह सामाजिक चुनौतियों के कई स्वरूप का अनुभव कराती है। तीस से पहले आदमी निजी चुनौतियों का सामना कर चुका होता है।

ऐसा कभी नहीं हुआ कि पीछे जाने का मन किया हो। कई बार किसी के वाट्सएप स्टेटस में या फेसबुक पर ऐसे पोस्ट आते हैं जिसमें समय को पीछ न कर सकने की कसक बताई जाती है!

पास्ट का अच्छा न होना एक तरह से अच्छा ही होता है। पास्ट जितना बुरा हो, आदमी अपने वर्तमान और भविष्य से उतना ही ज्यादा जुड़ा रहता है।

इतनी छोटी जिंदगी कब खत्म हो जाए पता नहीं!

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और अंत में...



उस दिन लगा नहीं था कि मामला तुरंत उच्च न्यायालय में जाएगा। सलमान खान के वकील ने सबको चौंकाते हुए उच्च न्यायालय में अपील की और सलमान खान के दोषी ठहराने के सेशन कोर्ट के फैसले को उसी दिन उच्च न्यायालय ने पलट दिया और सलमान को बेल दे दिया। जज की कुर्सी पर थे अभय थिप्से। वह इतना भयभीत थे कि उन्होंने कोर्ट रूम में खड़े एक व्यक्ति की कलम पर कैमरा होने का शक जताकर उसे कलम नीचे करने के लिए कहा।

यही थिप्से सोहराबुद्दीन केस में अमित शाह के खिलाफ खड़े होते दिखे और जस्टिस लोया की मौत पर भी अनर्गल बयानवाजी करते रहे। अब जाकर इन्होंने औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली।

ईमानदारी का जमाना बहुत दूर चला गया!

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