ये कौन सा दयार है!
नसीरुद्दीन शाह पुरानी फिल्मों में भी जंचते हैं और नई में भी। मैं हू न, इजाजत और मासूम तीनों ही फिल्मों में उन्होंने उस आदमी भी निभाई है जो एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर का मारा है और भयानक रूप से पसोपेश की स्थिति में आ चुका होता है।
रेखा के साथ रेलवे स्टेशन के उस वेटिंग हॉल का नजारा हिंदी फिल्म के सुनहरे नजारों में से एक है। फिल्म इजाजत में शाह और रेखा की जिंदगी का जो हिस्सा दिखाया जाता है वह गरमाहट और तनाव दोनों से भरा है। शाह का अतीत उसके वर्तमान से इस तरह गुंथता जाता है कि शाह कहीं के नहीं रहते और अंत में इजाजत लेकर रेखा चली जाती है। रेखा का इजाजत लेने वाला वह दृश्य उन आशिकों के लिए दर्दनाक है जो उसे समझने की कोशिश करते हैं।
मैं हूं ना और मासूम में वह कमोवेश एक ही तरह गिरगिराते नजर आते हैं। एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर से शाह को जो बेटा रहता वह उनकी कानूनी पत्नी को मंजूर नहीं होता वैसे ही जैसे फिल्म मासूम में होता है। मासूम में एक नया पेंच यह रहता है कि शाह दो बेटियों के बाप रहते हैं।
दो बेटियों का बाप होते हुए एक संयोगवश हुए बेटे की घटना और एक बेटा होते हुए संयोगवश हुए बेटे की बात में जो बुनियादी फर्क है उसकी जड़ें सामाजिकता से होते हुए कई रास्ते तक जाती है। खैर!
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