देव कौशल की बेचारगी तभी खटकती है जब वह ऑफिस में देर तक
कंप्यूटर पर कोई गेम खेलता हुआ दिखता है। वह लीन होता है। पहले दृश्य में ही यह
समझ आ जाता है कि उसकी दुनिया में घोर सन्नाटा पसरा हुआ है और खुद को उस सन्नाटे
से अलग कहीं व्यस्त रखना चाहता है।
"शादी गांव में होती है, शहर
में तो बैंड बजता है!"
देव अपनी पत्नी रीना को चाहता तो है लेकिन रीना की बेरूखी को समझकर अंदर ही अंदर घुटता रहता है। तिरस्कार एक ऐसी चीज है जो औरत और पुरूष दोनों देर-सवेर भांप ही लेते हैं। औरत जरा
जल्दी भांप लेती है।
ईएमआई, राशन, सर्विसेज वगैरह का खर्चा जोड़ते हुए उसका दिन और रात बीतता है।उसकी इस जिंदगी को करीब से देख रहा उसका सहकर्मी उसे अपनी पत्नी को सरप्राईज देने का जो सलाह देता है, देव उसे मानकर एकदिन ऑफिस से पहले ही निकल जाता है। फूलों का बड़ा सा झब्बा लेकर वह दबे पांव अपने घर पहुंचता है।
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ब्लैकमेल के एक दृश्य में इरफान खान |
रास्ते में उसकी जरूरत जागती है और वह संयोगवश जहाज पर मिली एक महिला के करीब आने की सफल कोशिश करता है। शशांक इतना असंतुलित हो चुका होता है कि हाथ में कांडम संभालते हुए वह हॉटल की रिसेप्शनिस्ट से भी फ्लर्ट कर डालता है। हालांकि वह रिसेप्शनिस्ट गुड नाईट बोलकर चले जाती है लेकिन शशांक के अंदर चल रहे नर्वसनेस की पोल खुल जाती है। वह अपने कमरे में जाता है जहां संयोगवश मिली औरत भी एक रहस्यमय बच्ची के साथ होती है।
उधर फूलों का झब्बा लेकर घर पहुंचे देव कौशल का अपनी पत्नी को सरप्राईज करने का मन टूटकर चकनाचूर हो जाता है जब वह अपनी पत्नी को किसी और के साथ बिस्तर पर आपत्तिजनक स्थिति में देखता है। खुद को संभालते हुए वह अपने ही घर से चुपके से निकलकर बदहवाश सा सड़क पर देर तक भागने के बाद सड़क के किनारे बनी छोटी सी मूर्ति के सामने फूलों का वह झब्बा रख देता है।
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मिसिंग के एक दृश्य में मनोज वाजपेयी और तब्बू |
इधर सुशांत दुबे बुरी तरह फंसता है। मॉरीशस की पूरी यात्रा बहुत तनाव में बीताते हुए वह आखिरकार अपनी जान से हाथ धो बैठता है। उसका मरना उतना दुखद नहीं है क्योंकि वैसे भी उसकी जिंदगी बस बीत रही होती है। पत्नी को वह मरते हुए भी याद नहीं करता है।
देव कौशल यानि इरफान खान और सुशांत दुबे यानि मनोज वाजपेयी, दोनों ही अपनी तरह के अभिनेता हैं और ऐसी फिल्मों को साईन करने के कारण ही उनकी एक अलग पहचान भी बनी है।
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