Wednesday, August 15, 2018

समानान्तर


                                       हर कहानी का हीरो शाहरुख खान नहीं होता! 

हिंदी सिनेमा अब उस दौर से आगे आ गई है जहाँ  हीरो और हीरोइन का मिलना ही सबकुछ हुआ करता था। हाल में दबे पाँव कुछ ऐसी फिल्में आई जिसने इस जड़ता को तोड़ा है। "अंग्रेज़ी में कहते हैं" ऐसी ही एक फिल्म है। 

संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी और वृजेन्द्र काला जैसे दोयम दर्जे के एक्टर के सहारे बनी यह फिल्म मध्यवर्गीय परिवार पर बनी श्रेष्ठ फिल्मों में शुमार की जाने वाली है।

शादी के बाद प्यार का क्या होता है? यह सवाल आत्मा के रहस्य सरीखा ही है! रिल और रियल दोनों ही लाईफ में यह सवाल चर्चित है।"दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे" से लेकर "चेन्नई एक्सप्रेस" तक में शाहरूख अपनी हिरोइन को पाते हुए दिखते हैं। इस मिलन के बाद क्या होता है, फिल्म के पास इसपर बोलने के लिए कुछ नहीं होता है।

हाल में आई फिल्म "तुम्हारी सुलू", "इंग्लिश विंग्लिश", "दम लगा के हईशा" और "इंग्लिश मीडियम" उन फिल्मों में से है जहां शादी के बाद की चीजों को खूबसूरती से दिखाया गया है।

जब वह डाकिया समय के मारे उस आदमी से पूछता है कि उसकी शादी अरेंज है या लव तो वह कहता है "लव अरेंज-अरेंज लव"! फिर वह आगे कहता है कि किस तरह उसे अपनी पत्नी से शादी से पहले प्यार हुआ और किस तरह वह प्यार शादी के बाद बढ़ता ही गया। डाकिया थोड़ा गहरे में जाता है और फिर कॉफी पीकर अपने घर की तरफ चल देता है। डाकिये की भूमिका में संजय मिश्रा जो भाव अपने चेहरे पर लाता है, वह अद्भुत है।

यशवंत बत्रा यानि कि संजय मिश्रा एक खूबसूरत बेटी और वफादार पत्नी के साथ औसत मध्यवर्गीय जीवन जी रहा होता है। वह परिवार और नौकरी के बीच संतुलन बनाते हुए अपनी सारी जवाबदेही उठाता है। बेटी को लेकर वह आम मध्यवर्गीय परिवार की तरह ही पजेसिव है। उसकी बेटी प्रीति, जिसकी भूमिका में शिवानी रघुवंशी हैं, पड़ोस के ही एक लड़के से प्यार में पड़ी है और इसकी भनक यशवंत को है। यशवंत आनन-फानन में एक लड़का अपनी बेटी के लिए खोजता है और फिर अपने ही पत्नी और बेटी के सामने विलन बन जाता है।

फिल्म की असली शुरुआत उस बगावत के बाद होती है जो प्रीति करती है। प्रीति अपने प्रेमी जुगनू के साथ घरवालों को बिन बताये शादी कर लेती है। यह नब्बे के दशक के आम फिल्मों जैसा ही लगता है। कहानी में ट्विस्ट आता है शादी के बाद किरण बत्रा के घर छोड़ जाने के बाद। किरण जिस तरीके से प्रीति का साथ देती है, यह यशवंत को अखरता है और बात बढ़ते हुए यहां तक पहुंच जाती है कि यशवंत का इगो हर्ट होता है और वह पत्नी के बिना भी रह जाने के लिए तैयार हो जाता है।

प्रीति और जुगनू की प्रेम कहानी के समानान्तर एक और प्रेम कहानी की शुरुआत यहीं से होती है जोकि यशवंत बत्रा और किरण बत्रा के बीच की है।  यशवंत और किरण के बीच की कहानी की आज की मांग है।

यशवंत और किरण, जो कि चौबीस साल से पति-पत्नी होते हैं, अजनबी की तरह दिखने शुरू होते हैं। कुछ समय बीतने के बाद यशवंत को किरण की कमी खलती है। उधर किरण का हाल भी ऐसा ही होता है। जो प्यार दोनों ने चौबीस साल से महसूस नहीं किया था, महसूस करने लगते हैं।

इस बीच उम्र के पचासवें पड़ाव के आसपास रहे यशवंत के बीच यौवन का संचार देखना मजेदार है। वह किरण को रिझाने के लिए प्रशिक्षण लेता है और डाकिये से एक आशिक बनते हुए देखा जाता है।

इधर पंकज त्रिपाठी की पत्नी अस्पताल में दम तोड़ देती है। यह पंकज त्रिपाठी वही है, जिसने यशवंत को लव-अरेंज-लव की दिलचस्प बात बताई थी।

फिल्म के आखिर में यशवंत और किरण जुदा होते दिखते हैं। किरण अपने भाई के साथ कनाडा चली जाती है, हालांकि हवाईअड्डे पर यशवंत आता है लेकिन उसमें उतनी हिम्मत नहीं होती है कि सीधे मुंह किरण से प्यार का इजहार करके उसे रोक ले। इस बीच संदेशों का करीब एक महीने का दौर चलता है।

आखिर में जब यशवंत हवाईअड्डे पर किरण को लेने आता है तो इन दोनों को देखकर अच्छा लगता है। किरण पहले से सुंदर दिखती है। इस बार यशवंत उसे स्कूटर पर सटकर बैठने के लिए कहकर उसके अंतरमन को तरंगित कर देता है। यशवंत इसबार स्कूटर का क्लच थीरे-थीरे नहीं छोड़कर अचानक छोड़ता है और अगला पहिया वैसे ही छलांग मारता है जैसे किसी कॉलेज में पढ़ रहे जोड़े का पल्सर बाईक मारता है।

कुल मिलाकर इस फिल्म में वह सब है जो एक पारिवारिक फिल्म में होती है या होनी चाहिए।



और अंत में...

 

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