Tuesday, July 3, 2018

इस बार का जुलाई

                         

                                     ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है!


जो बाकी था, वह एक पेपर था!

तीन साल के लॉ की आखिरी परीक्षा एक सुखांत के साथ संपन्न हुई। लॉ के दौरान मिले कई अच्छे और बुरे अनुभवों के बीच यह आखिरी अनुभव बाकी अनुभवों से बिल्कुल अलग और यादगार साबित हो गया।

छठे और आखिरी सत्र की आखिरी परीक्षा 15 जून को समाप्त हो चुकी थी लेकिन पांचवे सत्र में एक पेपर क्लियर नहीं होने के कारण मन के ऊपर दबाव बना हुआ था। ये वही पेपर था जिसकी परीक्षा के कारण तन्वी से मिलने में देर होती जा रही थी। तन्वी से मिलने की व्यग्रता के बीच दी गई परीक्षा भी इतनी बुरी नहीं थी कि उसमें फेल हो जाऊं! रिवेल्युएशन के लिए आवेदन दे देने के साथ ही फिर से परीक्षा का फॉर्म भी भर दिया था और परीक्षा 3 जुलाई को होने वाली थी।

15 जून से 3 जुलाई तक का समय अजीब मनहूसियत में बीत रहा था क्योंकि पढ़ाई से मन उचट चुका था। छठे सेमेस्टर की परीक्षा खत्म होने के बाद वापस पढ़ाई में मन लग नहीं रहा था। फेसबुक पर लॉ पूरा होने की जानकारी 15 जून को ही अपडेट कर चुकने के बाद मन और ज्यादा खिन्न था।

इस बीच मुंबई की बारिश ने एक-एक कर हम तीनों को ऐसा धोया कि अस्पताल की शरण लेनी पड़ी। ऑफिस और घर के बीच मुंबई जैसे तेज शहर में अस्पताल का आना किसी को भी परेशान या चिड़चिड़ा बना देता है। पहले से ही ढीली चल रही पढ़ाई को इस झुंझलाहट ने और भी ज्यादा बोरिंग कर दिया। नतीजा यह हुआ कि यूनेस्को और यूनिसेफ के तौर तरीकों को याद करने में ही जिंदगी पहाड़ सी बीतने लगी। मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय कानून का यह पेपर निहायत ही भेजाफ्राय था। अंतर्राष्ट्रीय संधियां, समझौते, संगठन, संस्थाएं, कानून और समुद्री कानून से जुड़े जघन्य शब्दावली को दिमाग में ठस्स करने के बाद आखिरकार 3 जुलाई को गवर्नमेंट लॉ कॉलेज पहुंचा।

अजीब सी झुंझलाहट दिमाग पर हावी थी। परीक्षा शुरू होने के करीब आधे घंटे बचे थे। इस उम्मीद में कि कोई चमत्कार हो जाये, मोबाईल जेब से निकालकर वाट्सएप खोला। लॉ कॉलेज के ग्रुप में एक ताजा-ताजा लिस्ट किसी ने डाला था जिसमें रिवेल्युएशन के कुछ रिजल्ट्स थे। चमत्कार हो गया और मैं चीख पड़ा।

यह एक चमत्कार ही था कि परीक्षा शुरू होने से आधे घंटे पहले मैं परीक्षा हॉल से बाहर आ गया क्योंकि रिवेल्युएशन में मैं पास हो गया था।

यह जुलाई की पहली खुशखबरी रही जो अद्भुत रही। ऐसी, जैसी शायद ही कोई पहले रही हो। संयोग यह था कि बीती रात ही मैं और भाग्य ऐसा होने की संभावना पर बात कर-करके रोमांचित हो रहे थे। कभी-कभी कही गई बात सच हो जाती है।





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