बच्चा खो गया है
पहली बार जब मंच से किसी बच्चे के गुम होने की सूचना दी गई तो मैंने भी अपने आसपास देखा. फिर थोड़ी देर बाद किसी बच्चे के गुम होने की सूचना खचाखच भरे मैदान के सभी साउंडबाक्स में सुनाई दी तो फिर मैंने प्रेस दीर्घा में इधर उधर देखा लेकिन जब तीसरी बार नाम मेरे कान से टकराया तब मैं अचानक पत्रकार हो गया. नाम मुस्लिम था.
क्या ये महज संयोग है कि राहुल गांधी की रैली में कई बच्चे खोते हैं और उनमें मुस्लिम शामिल होते हैं. मंच से माइक पर बार-बार उनका नाम पुकारा जाता है. क्या संदेश दिया जा रहा है और किसको संदेश दिया जा रहा है?
यह मानी हुई बात है कि मुद्दाविहीन राष्ट्र और दिशाहीन राजनीति के बीच कई समुदाय बुरी तरह फंस चुके हैं. राहुल गांधी जब बोलते हैं कि "मैं ब्रह्मण हूं" और मुलायम जब बोलते हैं कि वह सत्ता में आने के बाद मुस्लिमों को आरक्षण दिलावाने के लिए संविधान संशोधन करेंगे तो तमाम चीजें लेजर किरणों की तरह सत्ता की राजनीति के तह को भेद देती है.
तर्क के सहारे अपनी बात रखने की नींव जिस संसद ने रखी थी जब उसी से विश्वास डिग जाए तो देश का नागरिक कहां जाये?
धर्म और आध्यात्म पर किताब लिख चुके एक बिजनेस मैन से पिछले दिनों कलकत्ते में मुलाकात हुई. बात शुरू हुई तो कई ठहराव होते हुए समकालीन राजनीति तक पहुंची. उत्सुकतावश उनसे मोदी को लेकर उनकी राय पूछ ली. उन्होंने जो कहा उसे उसी तरह यहां लिख रहा हूं, "कोई एक आदमी बताइए जो मुस्लिमों को मन से चाहता हो. सब उपर उपर चाहते हैं लेकिन मन से कोई उनको नहीं चाहता." जैसा कि हर कोई कहता है वैसा ही उन्होंने भी अंतिम में कहा कि उनके कई मुस्लिम दोस्त भी हैं.
शाहबानो प्रकरण से लेकर सरमान रूश्दी प्रकरण तक कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की एक से बढ़कर एक मिसाल कायम की है. आगे भी ऐसा होता रहेगा इसमें अगर किसीको शक है तो वह राहुल गांधी के भाषणों को सुनकर उसे दूर कर सकता है.
मुसलमान जाएं अपनी बला से और हिन्दु जाएं अपनी बला से लेकिन देश में कई लोग ऐसे हैं जो बिना इन शब्दों को सुने अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं. ऐसे लोगों के लिए कांग्रेस से बड़ा खतरा कोई नहीं है. क्योंकि हिंदू साम्प्रदायिकता का जड़ मुस्लिम तुष्टिकरण में छिपा हुआ है जो कांग्रेस की देन है.
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