एक इच्छापूर्ति
जो हुआ वह बहुत दुरूह-सा प्रतीत हो रहा था। इतनी जटिलताओं के बावजूद अगर यह संभव हो पाया तो कोई न कोई ताकत थी जो हमारे तरफ से इसे संभव बनाती जा रही थी।
राहु अपने पूरे प्रभाव में था। 13202 का टू एसी टिकट वेटिंग 5 तक आकर ठहर चुका था और पूरी आशंका थी कि वह कंफर्म नहीं हो पाएगा। जाने के दो-तीन दिन पहले नजर पड़ी कि 22360 जो कि रिग्रेट था उसमें टिकट वेटिंग में मिल रहा है। रेलवे के कुछ अधिकारियों से बातचीत में पता चला था कि रिग्रेट भी सेटिंग का ही एक हिस्सा होता है। यानि कि अगर टिकट चाहिए और रिग्रेट है तो बात करके रिग्रेट खुलवा कर टिकट दिलवाकर वापस उसे रिग्रेट भी किया जाता है। एक बार टिकट वेटिंग में कट गया तो उसको फिर कोटा से कंफर्म करवा दिया जाता है। स्वप्निल नीला ने बड़ी मदद कर दी कि 22360 में टिकट कंफर्म करवा दिया जो टिकट दो दिनों पहले लिया गया था। हालांकि वह राहू के प्रभाव को नहीं रोक पाये।
पटना पहुंचते-पहुंचते 22360 करीब तीन घंटे से ज्यादा देर हो गई और वहां से पूर्णिया कोर्ट के लिए 18626 छूट गई। ये एक तरह का सदमा था क्योंकि उस ट्रेन का टिकट तत्काल में लिया था मैंने और तत्काल का कन्फर्म टिकट का कैंसिलेशन रिफंड नहीं होता है। आधी रात खराब हुई क्योंकि कोई अगली ट्रेन नहीं थी फिर वहां मालूम चला कि एक स्पेशल ट्रेन पूर्णिया के लिए जाने वाली है जो साढे सात बजे है। टिकट लेने के बाद पता चला कि वह ट्रेन रिशिड्यूल हो गई है और साढे नौ बजे जाएगी। आखिरकार वह ट्रेन रात में साढे दस बजे पटना से निकली और अगली सुबह यानि खरना के दिन सवेरे सात बजे के करीब मैं पूर्णिया पहुंच पाया।
आखिरकार मेैं वहां पहुंच गया।
छठ की खरीदारी करने का अनुभव बेजोर रहा। पहली बार गाड़ी का टायर पंक्चर हुआ। सब ठीक रहा। कुआं खोदना, सजाना वगैरह-वगैरह हुआ।
जो सबसे बड़ी इच्छा थी छठ को लेकर वह पूरी हुई।
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