रात के दो बजे से ठीक थोड़ा पहले आकाश जी का फोन आ गया कि वह आ गये हैं। डेढ़ का अलार्म दोनों फोन में लगाकर मैंने पास में ही फैन रखकर सोया था। नींद खुली और दो-चार काम खत्म करके मैं नीचे आ गया। करीब एक घंटे में हवाईअड्डा पहुंचकर ऊंघता हुआ था ४४-ए गेट के सामने लगी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया।
मन में हरदम कई तरह की बातें चलती है। उसमें कौन सी बात कब बहुत बड़ी और गंभीर हो जाए पता नहीं चलता। जैसे कि पास में कलम नहीं होना। घर से निकलते हुए कलम का भूल जाना। आकाश जी को कोई टिप्स नहीं देना। कल रात मुगम को भी टिप्स नहीं देना। भाग्य का घर से निकलते से ठीक पहले फोन आना, नहाकर चलने या बिना नहाए चलने को लेकर असमंजस, तमाम लड़कियों और महिलाओं को देखकर देशभर से आ रहे पुरुषों की आत्महत्याएं या उनपर हो रहे अत्याचार का विचार आना, मकानमालिक को समय पर किराया न दे पाने का तनाव, कार की ईएमआई के लिए रुपयों की चिंता और इन सबके अलावे अपनी असफलताओं का स्थाई अफसोस।
क्या ऐसा चलता रहेगा!
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