क्या भूलें, क्या याद करें!
पापाजी का जन्मदिन कभी याद नहीं रहा। इक्कीस नवंबर। बाद में सोचने पर ऐसा लगता है कि कुछ तो है जो इस तारीख से जुड़ा है लेकिन क्या है यह पता नहीं। बड़े होते परिवार में तारीखें भी नई-नई जुड़ती जाती है याद करने के लिए। जन्मदिन और शादी की सालगिरह को बात करने की औपचारिकताएं मध्यवर्गीय परिवार में कुछ समय के लिए ताजी हवा के झोंके की तरह आती है। वैसे तो बाकी चीजों की तरह ही इसका भी रस अब समय के साथ खो गया है लेकिन कुछ ही सही अभी भी बचा है।
सामान्य सा लगने वाला फोन उस दिन इतना अफसोस दे गया कि मन अगले कुछ दिनों तक बैठा रहा। पापाजी ने ही बताया कि आज उनका जन्मदिन है और साथ में यही भी बताया कि उन्नासीवां पूरा हो गया। पापाजी अब अस्सी में जी रहे हैं। वही मॉर्निंग वाक, वही देर रात खाना और वही हंसना-बोलना।
2008 के दिल के दौरे के बाद डॉक्टर ने उन्हें ज्यादा टहलने से मना किया था। बाद में 2023 में मेदांता में भर्ती होने के बाद लगा था कि अब वह कभी पहले की तरह टहल नहीं पाएंगे लेकिन ईश्वर पर अटूट भरोसा और जबर्दस्त जिद्दी स्वभाव के आगे सबके अनुमान सिफर होते गये और पापाजी का टहलना जारी रहा। मॉर्निंग वाक में गाय को रोटी देना, प्लेटफॉर्म के चक्कर लगाना और स्टेशन के पास चाय पीना। अगल घर आलीशान होता तो बागवान फिल्म जैसी रौनक लगती जब पापाजी टहलकर आते।
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