Saturday, June 29, 2024

कोल्हापुर का

                                         

                                                           सिनेमा हॉल

पिछले महीने जब चुनाव कवरेज के लिए महाराष्ट्र के अलग-अलग जिलों में घूम रहा था तो इसी दौरान कोल्हापुर जाना भी हुआ। शहर में हलचल रहती थी और सुबह और शाम में माहौल में गति दिखाई पड़ती थी। दोपहर में थोड़ा सन्नाटा दिखता था।

उस दिन अमजद गाड़ी सर्विसिंग के लिए छुट्टी लिया था और हॉटल में पड़े-पड़े मैं बुरी तरह बोर हो रहा था। कपड़े साफ हो चुके थे और टीवी खोलने का मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा था। मुझे तो बंद टीवी देखकर भी मन कोफ्त होने लगता था। टीवी को लेकर बड़ी अजब छवि बन गई है। यही लगता है कि ये बेमतलब की चीज है, जिसे नहीं होनी चाहिए। न न्यूज ढंग का, न सिनेमा मनपसंद और न ही कोई ढंग के धारावाहिक ही आते हैं। कुल मिलाकर गाने सुन और देख सकते हैं आप टीवी पर लेकिन वे भी आपके मनपसंद आएंगे ये भी एक संयोग की ही बात है। 

खैर, कुछ मन में आया और बाहर निकल गया। बाहर सड़क पर खिली धूप और सन्नाटा का अजीब दृश्य था। पास में एक थियेटर था जो मैंने सुबह देखा था नाश्ता करते समय। वहां जाकर पता किया तो एक सिनेमा का पता चला जो हिंदी में थी - मैदान। रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं होने के बावजूद सबसे महंगा वाला टिकट लेकर अंदर आ गया। हॉल देखा तो बेगूसराय का बुढिया हॉल या गया। थोड़ी देर तक अंदर बैठा रहा लेकिन कोई नहीं आया और फिल्म का समय होने लगा था। लगा कहीं गलत जगह आ गया हूं। पता किया तो पॉपकॉर्न वाले ने बताया कि सिनेमा यहीं चलेगी। कुल मिलाकर समझ में आ गया कि मैं ही अकेला ही देखने वाला और कोई नहीं है। 

फिल्म शुरू हुई। इक्के-दुक्के लोग और आए। फिल्म बुरी नहीं थी लेकिन चूंकि फिल्म से किसी तरह का जुड़ाव ही नहीं रहा है तो जैसे-तैसे देख डाला।

बाहर आया तो अंधेरा हो चुका था। काफी समय बाद सिनेमा देखना हुआ। चीजें बहुत सारी चलती रही उस वक्त दिमाग में। किस युग से किस युग में आ गये हम!


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और अंत में...



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