Tuesday, June 18, 2024

मुंबई की...

 

                                                   बनती हुई यादें!         

देर होना धीरे-धीरे आदत हो जाती है अगर अक्सर यह घटना घटती हो तो!

मुंबई से जाने के बाद बहुत सारी चीजें याद आएगी। घाटकोपर, अंटॉप हिल की दो अलग-अलग जगह और कामोठे का थर्ड फ्लोर का कमरा और उससे जुड़ी अनगिनत यादें बार-बार वापस यहां आकर कुछ समय बिताने के लिए मोहेगी। बहरहाल जो कुछ याद न रहे उनमें से भी कई छोटी-मोटी घटनाएं और चीजें होगी, इनमें से एक होगा भागमभाग।

सुबह चार से छह के बीच का भागमभाग महसूस किया जा सकता है, लिखा, बोला या समझा नहीं जा सकता। अलार्म का बजना, थोड़े-थोड़े अंतराल पर बहुत सारे फैसले करना, पानी के आने पर रहस्य बरकरार रहना, रसोई में फटाफट एक के बाद एक फैसले करते रहना, झाड़ू और अन्य वास्तु से जुड़े विधि-विधान, पूजा-पाठ, लंच के डब्बों को लेकर झटपट फैसले करते रहना कि किसे किसमें लेना है और किसे कैसे सहेजना है और तमाम छिटपुट फैसलों के बाद रसोई के सारे बरतन और चुल्हे को साफ करके रखना ताकि देर रात दफ्तर से आने के बाद कोई लंबित काम न दिखे।

उसकी नौकरी को करीब आठ महीने पूरे हो गये और उसने उससे पहले मुंबई में ऐसी भागमभाग रोज की थी। रफ्तार तब अस्सी-नब्बे की रही होगी जो आम रसोई में अधिकतम पंद्रह की रहती है। करीब दो साल चले उस दौर को न वो भूल पाएगी और पिछले आठ महीने से चले इस नये दौर को न मैं भूल पाऊंगा।

कितनी रफ्तार भरी है ये जिंदगी! 

कोई पूछे कि जिंदगी में सबसे बड़ा बोझ क्या होता है तो उत्तर होना चाहिए "रिग्रेट"।  रिग्रेट से बड़ा कोई बोझ नहीं होता। उसे ढोते हुए जिंदगी में आगे चलना कठिन होता है। जितने भी लोग तनाव में दिखते हैं या जिनके चेहरे पर कभी कोई ताजगी नहीं दिखती, अक्सर थकान दिखती है, वे रिग्रेट को ढोते हुए चल रहे होते हैं। किसी चीज को पाते-पाते रह जाने का रिग्रेट, किसी को अपने सपनों को जीते देखकर और खुद तो अलग-थलग पाने का रिग्रेट, फैमिली लाइफ को मन मुताबिक नहीं ढाल पाने का रिग्रेट और तमाम वैसे रिग्रेट जो तीस से पैंतीस की उम्र में जिंदगी में दबे पांव दाखिल होते हैं।

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