Thursday, December 7, 2023

लक्षद्वीप से तारकरली के बीच का समुद्र

 

                                                                  द्वंद्व

तट पर जाने का मन बिल्कुल भी नहीं था। साथ में परिवार न हो, बच्चे और पत्नी न हो तो फिर समुद्र के तट यानि की बीच पर जाकर करेंगे क्या! लेकिन ड्राईवर सुबह साढ़े सात का बोलकर नौ बजे उठे तो फिर जिस अतिथि को बुलाकर रखा है होटल पर उसके साथ एक कमरे में बातें भी तो बहुत-सारी नहीं की जा सकती तो कुल मिलाकर बीच के लिए ही निकल लिया गया।

खाली सा दिख रहा बीच पर कुछ बातें हुईं। बातें दफ्तर की बातों तक ही सीमित रहीं और होती चली गईं। बातें बढ़ी तो चहलकदमी भी शुरू हुई। बातों-बातों में पास के नाव पर नजर पड़ी जो तट पर बेजान सी पड़ी थी और उसपर लिखा था "गजानन स्क्यूबा डाइविंग"। फिर मन उससे आगे नहीं बढ़ा। वहीं रूक गया। ठहर गया। थम गया। विनोद ओझा बात करते रहे और मैं कान को उन्हें सौंपकर 2016 के नवंबर में खो गया।

हाथ में दो हजार के नोट लेकर हमलोग पहुंचे थे एर्नाकुलम। नकदी थी, वही जो शादी में मिली थी बाकी विमुद्रीकरण को हुए तब महीना भी नहीं पूरा हुआ था तो हाल खराब था। हमलोग लक्षद्वीप के लिए निकले। सफर अच्छा था और हमसफर नया था। ताजे, हरे, खुश्बुदार दिन थे जो कई दर्दनाक रातों के बाद आए थे। स्पर्श नया था और एहसास भी एकदम ताजातरीन।

गजानन, कमरा संख्या 107 के बाहर की तस्वीर    : विनोद ओझा


कल्पेनी या मिनीकोई बीच पर जब हमनें स्क्युबा डाइविंग के बारे में लगा बोर्ड देखा तो उत्सुकता हुई जानने की। जानने की बाद बहुत उत्सुकता हुई उसे करने की लेकिन खर्चा बहुत था। करीब पांच हजार लग जाते दोनों के। हमारे पास नहीं थे और एटीएम का भी कोई अतापता नहीं था। यूपीआई वगैरह भी तब चलन में नहीं था। अच्छी बात यह थी कि जितना मध्यवर्गीय मैं था भाग्य भी उतनी ही थी तो अपमानित होने जैसा कुछ नहीं था। वह और मैं स्थिति को समझते थे। कुल मिलाकर जितना हो सकता था उतना करके हम वापस हो गये। 

उसके बाद हमारा कई बार गोवा जाना हुआ, मुंबई में रहना हुआ और गुजरात भी जाना हुआ लेकिन स्क्युबा डाइविंग का संयोग नहीं बन पाया।

4 दिसंबर को नौसेना दिवस में भाग लेने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंधुदुर्ग जाने वाले थे। दूरदर्शन की ओर से कवर करने के लिए मुझे भेजा गया। बाद में पता चला कि मुख्य कार्यक्रम तारकर्ली में होने वाला है। कार्यक्रम खत्म करने के बाद अगले दिन विनोद ओझा भी साथ चलने वाले थे तो वह गजानन होटल पर आ गये और जब उनके साथ बीच पर जाना हुआ तो लक्षद्वीप वाली यादों ने वहीं घेर लिया।

भाग्य का बिहार सरकार में नौकरी करने के बाद का यह पहला अफसोस था। प्रथमेश जिससे होटल में बात होती थी, बता रहा था कि एक हजार रुपये प्रति आदमी पर करवाता है। दो हजार तो मैं कहीं से भी उपलब्ध कर लेता। खैर, अपनी यादों को जोड़ते हुए मैंने एक वीडियो फेसबुक पर पोस्ट कर दिया। देखते हैं कब बाकी बचे शौक पूरे होते हैं।


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गजानन में रूकें तो वहां की थाली जरूर खाएं
गजानन में रूकें तो वहां की थाली जरूर खाएं। एक सौ अस्सी की है।


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