Friday, December 29, 2023

संक्रमण काल

 

                                                      नए-पुराने पन्ने

कहीं से गुजरना जरूरी होता है समझने के लिए कि उस रास्ते की कठिनाइयां और सुविधाएं क्या हैं! सालों पहले बोलचाल में कई बार मैंने कहा होगा कि मैं आपकी बात समझ रहा हूं लेकिन पिछले करीब डेढ दशक से ऐसा मैंने किसी से नहीं कहा और जब भी ऐसा किसी ने मुझसे कहा तो मैंने उसे भी गंभीरता से नहीं लिया। दरअसल समझना एक बहुत जटिल प्रक्रिया है। यह एक तरह से असंभव है। 

कामोठे का वह वन बी-एच-के अब सूना हो गया है। भाग्य और बच्चों की जो चहल-पहल थी अब वहां नहीं है। बहरहाल वह घर करीब पांच सालों तक कैसे चला इसे मैं पिछले पांच सप्ताह में थोड़ा-बहुत समझ पाया। और जितना समझा उसके अनुसार भाग्य कई मामलों में असाधारण लड़की है। हालांकि एक निष्कर्ष यह भी निकला कि परिवार में अगर प्यार हो, एक-दूसरे को लेकर अच्छी समझदारी हो, सम्मान हो, निस्वार्थ जुड़ाव हो और अच्छे संस्कारों का असर हो तो बड़ी चुनौतियों का सामना भी कम मुश्किलों से होते हुए किया जा सकता है।

रोटी और भूजिया। बस ये दो चीज मैं पिछले कुछ दिनों से बना रहा हूं और ये बनाने में मुझे रोज देर हो रही है। ऐसा तब है जब घर में मैं बस झाड़ू दे रहा हूं, पोछा भी नहीं कर पा रहा और न ही बच्चों को विद्यालय के लिए तैयार ही कर रहा हूं। मैं हांफता हुआ उठ रहा हूं और इस कमरे से उस कमरे में चीजें सहेजते-सहेजते घंटों व्यर्थ करता जा रहा हूं। सचमुच मैं पिछले एक महीने में कई बार यह सोचने को विवश हो गया हूं कि भाग्य ने आखिरकार इतने दिनों तक घर को कैसे चलाया। मेरे लिए वह कम से कम चार चीज तो बनाती ही थी और बच्चों के लिए पेन कैक, पिज्जा, पराठा वगैरह की गिनती तो मैं कर भी नहीं रहा जिसमें अतिरिक्त मेहनत और समय की जरूरत होती थी। इसके साथ बच्चों को फ्रेश करके स्कूल के लिए तैयार करना भी उसे होता था। मैं इतना सोचकर ही थक-सा जाता हूं। फिर सोचता हूं कि दोनों बच्चों का होमवर्क, उसको बैग में रोज के हिसाब से अलग-अलग किताब-कॉपियां देना, उसका होमवर्क करवाना, बदल-बदल के यूनिफॉर्म पहनाना और इन सब के अलावा स्कूल में होने वाली एक्टिविटिज के लिए न केवल दोनों को तैयार करना बल्कि उन्हें उनका बेस्ट देने के योग्य बनाना। तन्वी ने तो स्कूल से कई सर्टिफिकेट जीते हैं। भाग्य ये सब कैसे कर लेती थी इन वन बीएचके में! उसका हमेशा मेरे ऑफिस से निकलते समय फोन आता था कि क्या खाओगे! इनसब के बावजूद उसने एक सरकारी नौकरी की प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। क्या सच में आपसी प्यार और समर्पण किसी में इतना ताकत भर देता है कि वह असंभव को संभव कर दे।

बहरहाल, तन्वी का केंद्रीय विद्यालय कोलाबा का चक्कर मुंबई लोकल, बेस्ट की नेवी नगर वाली बस और चलते हुए लगाना हम दोनों शायद ही कभी भूल पाएं। उस सुबह को भी शायद ही हमलोग भूल पाएं जब तन्वी का दाखिला एनएडी करंजा केंद्रीय विद्यालय में करवाने के बाद एक कैबवाले को हमदोनों ने तन्वी को स्कूल पहुंचाने की जिम्मेदारी दी थी और जिस दिन उसे ले जाना था उस दिन वह कहीं दूर था। सुबह तन्वी को मैं स्कूटी पर लेकर बहुत ही जोखिम भरे तरीके से स्कूटी चलाते हुए उसे पनवेल सर्किल तक ले गया था। मैं एकदम डरा हुआ था उस दिन क्योंकि तन्वी को करीब चालीस किलोमीटर की यात्र उस कैब से अकेली करनी थी और उसे आगे बैठाया गया था क्योंकि पीछे बच्चे और मैडम पहले ही भरे थे।

ईश्वर की कृपा से जिस दौर को हमने काटा उसमें किसी के भी संघर्ष को कम नहीं आंका जा सकता है। तन्वी का अपना स्ट्रगल था। वह मानसरोबर से सीएसटी तक मुंबई लोकल में जाती थी, रास्ते में सो जाती थी लेकिन कहते हैं न बेटी सब समझ जाती है शायद इसलिए वह कभी भी कुछ बोलती नहीं थी। बस रात में पूछती थी कि कल उसे न्यू स्कूल जाना है या ओल्ड स्कूल। हमदोनों उसके चेहरे को पढ़ लेते थे।

गन्नू शायद बड़ा होकर समझे कि उसे पिज्जा बोलकर क्या खिलाया गया और पनीर बोलकर क्या दिया गया।

मेरी जिंदगी में कितने नए पन्ने इन सालों में जुड़े उन्हें पलट-पलट कर पढ़ने का मन करता रहेगा।

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