Saturday, January 21, 2023

अतीत के आईने में

                             

                                                          रोजगार मेला

सबकुछ बटोरकर चलते जाने के बावजूद कुछ न कुछ छूट ही जाता है।

खोज-खबर, ज्ञानोदय, दीपक पुस्तक भंडार, शंकर पुस्तक भंडार जैसे कुछ नाम दो दशक के बाद भी याद है। शंकर पुस्तक भंडार की तो एक अलग ही कहानी थी। एक ब्लैंक चैक की तरह भैया की एक चिट्ठी वहां पड़ी हुई थी जिसे कभी भी वहां उपयोग में लाया जा सकता था। सरकारी नौकरी के आवेदन फॉर्म इन्हीं दुकानों पर मिलते थे और यहां अक्सर लड़कों का आना-जाना लगा रहता था। कुछ भर्तियां नियमित होती थीं और कुछ कभी-कभार। मुझे याद नहीं है कि कभी किसी भर्ती का मैंने बेचैनी से इंतजार किया हो या उसे भरकर उसकी लगन से तैयारी की हो।

जो फॉर्म मुझे भरना था वह ऑनलाइन आता था। दिल्ली विश्वविद्यालय, भारतीय जनसंचार संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय आदि। शायद ये फॉर्म पहले से बता देने पर फॉर्म दुकान वाले भी ले आते थे।

कल अचानक उस दौर ने मन-मस्तिष्क पर एक तरह से धावा बोल दिया। 

छात्र जीवन से पेशेवर जिंदगी के बीच का संक्रमण मध्यवर्गीय परिवार के बच्चों के लिए द्वंद्व से भरा हुआ होता है। छात्र जीवन यानि कि स्नातक के बाद हमारे तरफ नौकरी करके घर-गृहस्थी संभालने का रिवाज रहा था। कुछ पारिवारिक-सामाजिक उलझनों से दो-चार होते हुए मेरा रूझान एक तरह का प्रभाव रखने वाले क्षेत्र की तरफ जा रहा था जिसे तब मीडिया के नाम से समझा जाता था। 

पहली बार घर पर पुलिस आई थी। पहली बार धमकी देने अपराधी आए थे और पहली बार काफी कुछ हुआ था। मेरे पत्रकारिता में आने की घटना भी शायद घर-परिवार-समाज में पहली थी। पत्रकारिता में आने के बाद पुलिस थाना, सदर अस्पताल जैसी जगहों पर आना-जाना नियमित हो गया था और फिर पुलिस को लेकर जो डर था वह धीरे-धीरे कम होकर खत्म जैसा होने लगा था।

आज उस दौर को दो दशक हो गये। सरकारी नौकरी न होने की कसक कई बार रही। यूपीएससी के साक्षात्कार में बैठने की घटना दिमाग में छप गई और बीपीएससी के मेन्स में घबराहट में लिखे गये जवाब की यादें भी शायद ही कभी दिमाग से निकले। इन सब चीजों को दिमाग में रखते हुए रोजगार मेला को कवर करना एक कठिन चुनौतीपूर्ण काम है। जिस अतीत में अनगिनत ऐसी घटनाएं हुई हो जिसने सबकुछ तोड़-मरोड़ कर रख दिया हो और भविष्य का रास्ता उसी मकड़जाल से होकर निकला हो उस अतीत को ओर मुड़कर देखना और तमाम पछतावों का एक साथ सामना करना सच में मन और शरीर को जमा देने वाला था।


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