Tuesday, November 29, 2022

एक दशक पर

                                                                 दो शब्द!

इस बीच कितनी हवाएं चलीं, कितनी बारिशें हुई और कितना अंधेरा और उजाला हुआ बावजूद उस रात का अंधेरा हमेशा याद करते रहने का मन करता है। घटनाओं का क्रम धीरे-धीरे दिमाग से ओझल होता जा रहा है लेकिन जो चीजें स्मृति में जमी है वह है उस मंदिर के चौखट पर घंटों खड़ा रहना और फिर बाद में मुहल्ले में घर की छत पर खड़े होकर बहुत देर तक सोचते रहना। 

उस रात उस टोले में जाना भी हुआ था। जो चीजें ओझल हो गईं वह ये कि उस वक्त मेरा कौन सा मोबाइल नंबर सक्रिय था और मैं तब कैसा दिख रहा हूंगा...क्या तब मैंने मूंछें रखी हुई थी या तबतक कटवा चुका था!

ठीक एक दशक के बाद अब मुड़कर देखने पर ऐसा लगता है कि फिर से वहां जाकर खड़े होकर देखूं कि क्या वह गली अब भी वैसी ही दिखती है जैसी तब दिख रही थी। क्या सबलोग अब भी वैसे ही हैं और वैसी ही हवाएं वहां चारों तरफ चलती है! 

क्या प्रियंका जनरल स्टोर में अब भी वही स्मार्ट सा आदमी है और शाहजी का दुकान अब भी वैसा ही है जैसा तब था! 

 

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