Thursday, June 16, 2022

रिहाई

                                                      इलाहाबाद!

यहां से खड़ा होकर अगर आगे की ओर देखा जाए तो कुछ भी नजर नहीं आता लेकिन वहीं अगर आगे के बजाय पीछे की ओर देखा जाए तो लगता है सबकुछ घूम रहा है। 

इन बारह सालों में कितनी घटनाएं घटित हुईं उसका ब्यौरा डायरी के उन पन्नों में भी दर्ज नहीं हो पाया होगा जिन पन्नों में वे तारीखें दर्ज होंगी जिनमें वे घटनाएं हुईं।

तीन शादियां, एक दिल का दौरा, दो बड़ी असफलताएं और कितनी ही छोटी-मोटी कड़वाहटों से भरे संस्मरण इन बारह सालों में हुए। आर्थिक तंगी, अपमान, हताशा के कई आवेगों से गुजरते हुए ये बारह साल परिवार ने ऐसे काटे जैसे कोई युग कट रहा हो। 

इन बारह सालों में घर आईसीयू की तरह बना रहा। हर फोन अपने साथ एक आशंका का भाव लिये आता रहा। फोन पर होने वाली बातें पूरी तरह औपचारिकता तक सीमित रह गई। प्रणाम-खुश रहो, मौसम कैसा है-अच्छा है;वहां का कैसा है, खाना हो गया-हां अभी हुआ है..कर रहे हैं..वगैरह वगैरह...!

किसी का गलत किसी का सही और किसी का सही किसी का गलत बनता रहा। धन जाता है तो धर्म भी जाता है। धनरहित आदमी को धर्म का पालन करने में कई तरह की कठिनाइयां आती हैं और ये कठिनाइयां उसे विवश करती हैं कि वह दूसरों की नजर में वह नहीं रह सके जो वह दरअसल होता है। 

इलाहाबाद शब्द पहाड़ जैसा असर छोड़ने लगा था। अभिभावक क्या होता है इसकी अगर सोदाहरण व्याख्या कोई पूछ बैठे को इस बीते बारह सालों में उस अभिभावक की जीवन पटकथा सामने रख देना पर्याप्त होगा जो इन बारह सालों में कभी अकेले तो कभी किसी को लेकर इलाहाबाद की यात्रा जैसे-तैसे करता रहा।


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