Saturday, March 12, 2022

चीख से साक्षात्कार

 तहखाना


आसपास से गुजरता हर आदमी चीख दबाए हुए चला जाता रहता है। वह चीख भी ऐसी ही दबी रह जाती अगर थोड़ा फुर्सत निकालकर उनसे नहीं मिलने गया होता!

समय अब पहले से ज्यादा तेज है। दिन-सप्ताह-महीना पहले की अपेक्षा आज बहुत तेजी से बढ़ता हुआ मालूम होता है। 

उस दिन अंग्रेजी के उस कोचिंग में उन्होंने अपने योगमुद्रा से सबको चौंका दिया था। आज भी याद आता है उस दौर में कुछ अलग करने की जिद। अलग मतलब जो बाकी लोग नहीं सोच पा रहे हों या करने का साहस जुटा पा रहे हों। सरकारी नौकरी वाला फॉर्म न खरीद कर कुछ ऐसा कि अपना परिचय देते समय अंदर से सीना फूला हुआ सा महसूस हो। उनकी योगमुद्रा को देखकर मेरे प्रभावित होने की एक बड़ी वजह यही थी कि पारंपरिक सोच से अलग अपना भविष्य संवारने वाला कोई आदमी मुझे दिखा था। रेलवे, एसएससी, बैंक वगैरह की परीक्षाएं देकर भविष्य सुनिश्चित करने वाले लड़कों से अलग कोई ऐसा लड़का जो योग के सहारे अपना भविष्य देख रहा था। 

दशक बीत गये इस बीच कुछ दफा बेगूसराय जाने के क्रम में अंग्रेजी के उस कोचिंग में जाना भी हुआ। सर से बात करते हुए उनका जिक्र हो जाता था। सुनकर अच्छा लगता था कि वह म्यांमार में परिवार के साथ रह रहे हैं। हाल में पता चला कि उन्होंने बीएमडब्ल्यू भी ले ली है। परिवार के साथ कार की फोटो उनके फेसबुक प्रोफाइल पर देखकर कई भाव एक साथ उभरे। कई तरह की सोच। आखिर कैसे यह संभव हो पाया! क्या योग के बदौलत करियर को इस बुलंदी तक ले जाया जा सकता है! 

यह कहना सही भी नहीं होगा और गलत भी नहीं कि वह इस मामले में मेरे आदर्श बन गये थे कि परंपरागत तरीके की पेशेवर जिंदगी के अलावा भी बेगूसराय के लड़के कुछ और कर सकते हैं। मुझे अभी भी याद है कि इग्नू से जब मैंने मानवाधिकार के सर्टिफिकेट कोर्स में दाखिला लिया था तो शायद जिले का मैं एकमात्र ऐसा छात्र था जो मानवाधिकार की पढ़ाई कर रहा था। जड़ता को तोड़ने की जिद! 

पिछले दिनों फेसबुक मैसेंजर पर एक मैसेज उभरा। म्यांमार से उनका मैसेज था। हालचाल की दो-चार पंक्तियों की औपचारिकता के बाद बातचीत शुरू हुई तो मालूम चला कि वह स्वदेश लौटना चाहते हैं और जिले में संभवनाओं की तलाश कर रहे हैं। बेगूसराय जैसे जिले में भला क्या कामकाज हो सकता है जिससे इतनी कमाई हो सके कि बीएमडब्ल्यू वाली जीवनशैली को बरकरार रखा जा सके! धर्मसंकट की स्थिति बन गई। जिले में यहां तक कि पूरे बिहार में यह हाल है कि सरकारी नौकरी से अलग कुछ करने या करने की सोच रखने वाले को गिरी हुई नजर से देखा जाता है। ऐसे में उनके लिए रोजगार की जुगत करने से ज्यादा जरूरी था खुद को मानसिक रूप से जिल्लत के लिए तैयार करना। यह बात उनको बेलने का साहस जुटाना मेरे लिए इसलिये मुश्किल था क्योंकि मैं दशक पहले का योगेश नहीं होकर नया योगेश हो चुका था, जो हर स्थिति में चुप रहना पसंद करता था। 

जो विकल्प मैंने उनको सुझाए थे वह उतने आसान नहीं थे। अपनी तरह के कुछ योगा शिक्षकों को जोड़कर जिले के प्रखंडों में एक साझा नाम से कोचिंग शुरू करना और कॉरपोरेट सेट-अप में इसे ढालना आसान नहीं था। पूंजी निवेश को लेकर उनकी स्थिति को जाने बिना मैंने उन्हें वह सलाह दी थी। उसके बाद उस बारे में उनसे मैसेंजर पर बात नहीं हुई। भागमभाग की जिंदगी में जो समय फेसबुक के लिए बचता था उससे मालूम चलता था कि वह बेगूसराय आ गये हैं। 

एक बार फेसबुक से पता चला कि उन्होंने आटा और सत्तू बेचने का काम शुरू किया है!

किसी का अधिकतम ऊंचाई से निम्नतम गहराई तक गिरने की जो भी स्थिति मेरा दिमाग सोच सकता था उनकी स्थिति उसमें भी समाहित नहीं हो पा रही थी। कुल मिलाकर मैं सोच ही नहीं पा रहा था कि वह कहां से कहां आ गये और यह सब इतनी तेजी से कैसे हो गया!

   

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