Sunday, January 23, 2022

 

तब वाट्सएप नया-नया आया ही था। सात हजार और तिरसठ सौ...कुल मिलाकर तेरह सौ के करीब की मासिक आमदनी और महीने के खर्चे के बीच थोड़ा-बहुत रुपये निकाल कर स्मार्ट फोन लेने की कई कोशिशें बेकार चली गई थी। फ्रंटलाइन तबतक अस्सी रुपये का नहीं हुआ था लेकिन पच्चीस का भी नहीं था। पत्र-पत्रिकाओं की दरों में 2011-12 के दौर में खूब बढ़ोत्तरी हुई थी और मुझ जैसे न जाने कितने ही लड़कों को दिल्ली की जिंदगी की डगर कठोर बना रही थी।







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