Sunday, September 19, 2021

यायावर

 

                                                 वो तमाम प्रयोग...

बाहर की दुनिया का मनोरंजन अनोखा होता है। यात्रा के दौरान या फिर कहीं घर से दूर किसी जगह कई तरह के प्रयोग दिनचर्या का हिस्सा बन जाते हैं जिन्हें कभी भूलने का मन नहीं होता है। 

हाल में बिहार जाना हुआ। चुनावी रैलियों को कवर करने के लिए एक जिले से दूसरे जिले जाना हो रहा था। कुल मिलाकर बोला जाये तो भागमभाग बनी हुई थी। व्यस्त दिन और कसी हुई शाम के बाद रात इतना मौका नहीं छोड़ती थी कि कुछ और किया जा सके सिवाय दो-चार औपचारिक फोन कॉल के। 

एक शाम कपड़े साफ करने के बाद ध्यान आया कि आयरन तो साथ लाया ही नहीं! बगैर आयरन किये कॉटन शर्ट पहनना थोड़ा असहज सा करता है। अच्छी बात यह रही कि साथ में जो दिल्ली से गये कैमरामेन थे उनके पास आयरन था और अपना काम हो गया। हालांकि रोज उनसे आयरन मांगना ठीक नहीं लगा इसलिए कुछ दिनों के अंतराल के बाद एक बार ही आयरन लेकर सारे कपड़े सहेज लिये गए।

असम चुनाव में भी यही हुआ और वहां के स्ट्रिंगर नबुल ने अपने घर से आयरन उपलब्ध करवाया।

ये तो वे बातें हुई जो स्वाभाविक सी है। मजेदार तो वे अनुभव होते हैं जहां प्रयोग किया जाता है। मसलन, पुणे में एक कार्यक्रम कवर करते हुए वहां के अतिथिगृह में काफी दिनों तक रूकना हुआ। रोज सुबह बाहर जाकर नाश्ता करना एक भारी काम लगता था। 

बालकनी में गया तो बगल वाले कमरे में दो स्टाफ चाय पीते दिख गये। पूछा तो मैंने कह दिया कि बगैर कुछ खाये चाय पीने का मजा नहीं है। इतना सुनते ही दो-तीन सेंके हुए ब्रेड उन्होंने कमरे से लाकर दे दिया।


"ये ब्रेड कहां से सेंके"

"आयरन से"

"क्या..." (मैं स्तब्ध-सा रह गया)
 

इस कला के बारे में तो मुझे मालूम ही नहीं था। हालांकि फिल्ड पर दूरदर्शन के कैमरापर्सन और हेल्पर तरह-तरह के जुगाड़ तैयार रखते हैं इसकी भनक थी मुझे लेकिन आयरन से ब्रेड-बटर का इंतजाम किया जा सकता है इसकी कल्पना भी नहीं की थी हमने।

इधर गुजरात जाना हुआ। सवेरे लाइव के लिए सर्किट हाऊस से निकलते वक्त ध्यान आया कि बाल में कंघी तो की ही नहीं। कंघी के लिए बैग खोला तो वहां कंघी थी ही नहीं। दिमाग चकराया। बड़ेृ-बड़े बाल और प्रधानमंत्री से जुड़े कार्यक्रम का लाईव...किसी ने भी नोटिस किया तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी!

कहते हैं कि जुगाड़बाज लोगों के साथ रहने से एक अनाड़ी आदमी भी काबिल होकर थोड़ा-मोड़ा जुगाड़ सीख ही जाता है। 

टेबल पर कटोरी में अंकुरा हुआ चना-मूंग अभी भी रखा हुआ था। नजर उधर गई तो इस बार ठहर गई। वहां पड़ा फोर्क यानि की कांटा चम्मच को छुआ। उसे उठाया और उसे कटोरी में न डालते हुए सीधे ऊपर मुंह से आगे ले जाकर सीधे सर पर डाल दिया। कांटे का चम्मच बाहर में कंघी का काम कर सकता था यह कभी अपन ने सोचा ही नहीं था लेकिन कहते हैं न कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है!

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