आदतन
आदतन आ जाता हूं इस और हर रविवार को यह जतला ने कि मैं कटिबद्ध हूं तुम से रूबरू होने को। जिस दौर में हर कोई डरा डरा सा है आशंकित है और मन ही मन खुद से ही सवाल कर रहा है उस दौर में मेरा तुम्हारी तरफ आना यूं ही नहीं है।
ममहानगरों की जिंदगी आदमी को आदमी नहीं छोड़ती बेचारा हर वक्त चैन की तलाश में यहां से वहां दरबदर भटकता दिखता है। कभी निराश कभी थका हुआ सा हर तरफ देखता है लेकिन हर तरफ धूप ही धूप दिखती है।
कभी किसी समाचार पत्र में किसी कोने में लिखा पाया था कि दिल्ली एक ऐसी औरत है जो अपनी तरफ खींचती है लेकिन अपनी असलियत कभी नहीं बताती। मुंबई का तो कहना ही क्या!
साल दर साल बीते हुए मालूम नहीं चला कि कब किस घटना को कितने साल बीत गए। इतने सालों में जितनी असफलताएं मिली उन्हें भुलाना मुमकिन ना हो सका। लोग बाग कहते रहे की सकारात्मक हो जाओ सकारात्मक सोच लो सकारात्मक विचार वाले लोगों के साथ रहो लेकिन हाले दिल कहे तो कहीं किससे और ना कहें तो सकारात्मक रहें कैसे!
पता नहीं यह कोई साजिश थी या फिर कोई उटपटांग सहयोग की भूले बिसरे लोगों ने अचानक पैसों की मांग करनी शुरू कर दी। किसी को दो हजार किसी को 3000 तो किसी को ₹5000 की जरूरत थी। जिस लड़की ने ₹1000 की मदद के लिए मैसेज किया। उसने मेडिकल इमरजेंसी की बात भी मैसेज में लिखी। यही कोई छह-सात महीने बीते होंगे उसने पहले भी कुछ पैसों की मांग की थी। अपन तक जितने मजबूर थे उससे ज्यादा आज मजबूर थे। मजबूरी इंसान को इस लायक नहीं छोड़ती कि वह किसी से इतना पूछे की मेडिकल इमरजेंसी में याद किया है सब ठीक है ना!
पावर आदमी को क्रूर बना देता है। इस क्रूरता ने किसी को नहीं छोड़ा उसको भी नहीं जिसके अधीन वह था।
No comments:
Post a Comment