जो गिनती में नहीं आए...!
यह मालूम चलने पर कि उसकी दुकान अब किसी दूसरे आदमी के पास आ गई है, कोविड की कई खबरों की यहां-वहां फैली कतरने फिर से आंखों के सामने कड़कती हुई गुजर गई।
बातचीत से वह आदमी राजस्थानी लगता था। मृदुभाषी था और दुकानदारी में सक्रिय था। घर में पीने का पानी उसी के दुकान से आता था। उसको फोन करने के बाद वह किसी को बिसलरी का बीस लीटर का डब्बे के साथ भेजता था। उसका आदमी गूगल पे पर रुपये लेता था और पानी रखकर खाली डब्बा ले जाता था। यह सिलसिला तब शुरू हुआ था जब घर में परिवार के लोगों का आनाजाना शुरू हुआ। दिल्ली के दिनों से ही गर्म पानी को ठंढा पीने की आदत लग गई थी। वही आदत शादी के बाद भी जारी रही। ज्यादा लोगों के लिए बार-बार पानी करना मुश्किल था तो बिसलरी का सप्लाई शुरू करवा दी थी।
घर में दो लोगों के लिए गरम पानी को ठंढा करके स्टोर रखना ज्यादा मुश्किल नहीं था इसलिए पानी के लिए दुकानवाले को फोन किये बहुत दिन हो गये थे। इस बीच कोविड के खतरे को देखते हुए भाग्य और बच्चों को भी घर पर भेज दिया था। पिछले दिनों जब ध्यान आया कि बिसलरी का वह खाली डब्बा ऐसे ही पड़ा है तो सोचा इसको वापस ही कर दिया जाये। अगर सिक्योरिटी मनी मिल जाये तो अच्छा न मिले तो भी घर कम से कम थोड़ा हल्का होगा।
दुकान पर जाकर मालूम चला कि वह दुकान दो दुकान के बाद शिफ्ट हो गई है। वहां जाकर जिस लड़के को देखा उसे पहले कभी नहीं देखा था। उससे पूछने और वह मोबाइल नंबर जिसपर पानी ऑर्डर करता था, दिखाने के बाद पता चला कि वह राजस्थानी आदमी अब गांव चला गया है और दुकान थर्ड पार्टी को मिल गया है।
कोविड 19 ने सबसे ज्यादा खुदरा व्यापारियों और दैनिक आमदनी करने वालों को मारा।
दो मिनट के लिए वहीं रखे प्याज को टटोलते हुए सोचने लगा कि वह आदमी कितना विवश होकर शहर छोड़ा होगा और उससे ठीक पहले उसके क्या-क्या दिन देखे होंगे! कैसे-कैसे फोन उसके पास आये होंगे और लॉकडाउन के कैसे बोरिया बिस्तर समेटकर या फिर जैसे तैसे बेचबाच कर वह यहां से गया होगा।
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याद नहीं आता कि कभी उस दुकान के अलावा कहीं और से फोटोस्टेट करवाया होगा। कुमावत की दुकान छोटी भले थी, लेकिन साफसफाई और उन दो लड़कों का व्यवहार बहुत अच्छा था।
काफी समय के बाद फोटोकॉपी की जरूरत पड़ी थी। भाग्य को कुछ कागज प्रिंट कराने थे और मुझे गोवा के हॉटल का बिल ऑफिस में देना था जिसकी सॉफ्ट कॉपी ही मेरे पास थी।
स्कूटी से दूर से ही वह दुकान बंद दिखी। मन उसी तरह की आशंका से भर गया। बंद दुकान के आगे गाड़ी रोकी तो वहां ए-4 साईज का एक पोस्टर दिखा, जिसपर एक मोबाईल नंबर लिखा था। रिंग होते ही मुंह से निकला "कुमावत कहां हो"!
सामने से जो आवाज आई उससे यह समझने में देर नहीं लगी कि वह आवाज कुमावत का नहीं बल्कि किसी और का है। फिर उसने बताया कि दुकान बंद हो गई है और अब कुमावत कहीं दूसरी जगह चला गया है।
ठीक-ठीक याद है कि उन दो लड़कों में से किसी की पत्नी भी कई बार दुकान पर दिखती थी। कुल मिलाकर पूरा परिवार जतन करके दुकान चलाता था लेकिन उस जतन को कोविड 19 के दौरान लगा लॉकडाउन कुचलते चला गया और किसी की कराह की आवाज तक किसी को शायद ही सुनाई दी!
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जिस बिल्डिंग में मैं रहता हूं उसके नीचे ही पिछली तरफ वह छोटी सी दुकान थी। तन्वी को सुबह घुमाने के क्रम में कई बार देखता था तो वहां एक बुजुर्ग बैठे दिखते थे। एक बार तन्वी ने जिद की तो वहां उसे कुछ चॉकलेट वगैरह दिलवा दिये थे।
पिछले सप्ताह उधर से जा रहा था तो ध्यान आया कि पासपोर्ट के अप्वाइंटमेंट का पेपर प्रिंट आउट लेना है। सोचा यहां ट्राई करता हूं। दुकान पर वह बुजुर्ग नहीं दिखे, उनकी जगह एक लड़का दिखा। आशंका का भाव चेहरे से छिपाते हुए पूछा कि वह आपके पिता जी हैं क्या! मालूम चला वह दुकान बिक गई है और अब यही लड़का यह दुकान चलाता है।
उस बुजुर्ग के अते-पते के बारे में उस लड़के से पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
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