Sunday, November 29, 2020

वह एक फोन

 

                                           ...जिसने नवंबर को यादगार बनाया

कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जो चित्त के एक हिस्से में स्थाई रूप से ठहर जाती हैं। ऐसी घटनाएं सालों बाद तक याद रहती है।

तब मुझे खुद भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि मैंने उस तारीख का पता लगा लिया था। 

डीएलए में आम दिनों जैसा ही काम चल रहा था। काम करते-करते हमलोग कई बार दफ्तर के बाहर आकर फोन पर बात कर लिया करते थे। फोन कभी घर का होता, कभी दफ्तर से जुड़े किसी काम से या फिर कभी किसी और का।

फेसबुक की छूट थी तब जो कि बाद में खत्म कर दी गई थी। फेसबुक पर आए मैसेज के बाद से मन बहुत अजीब तरह की कुंठा में जा चुका था। इतनी चिड़चिड़ाहट उससे पहले कभी नहीं हुई थी जितनी तब हो रही थी।

लोगों की कमी थी, सो बात किससे किया जाये यह एक अलग ही समस्या थी।

बहरहाल, यह पुष्ट करना कि फेसबुक पर दी हुई जानकारी सही है या नहीं, बहुत ही जरूरी था। बतौर पत्रकार खबर को पुष्ट करने की आदत भी विकसित हो गई थी समय के साथ।

जिस आदमी को इसके लिए चुनने का निर्णय लिया वह वकालत में नया-नया था। वह एक ऐसा आदमी था जिसपर दांव लगाया जा सकता था क्योंकि उसकी चर्चा कभी-कभार हुई थी। कुछ समय में मन के अंदर पूरी योजना तैयार हो गई और फिर खेल खेला गया।

"हैलो, वकील साहब नमस्कार, हम पटना से बोल रहे हैं"
"नमस्कार...जी कहिये..."

"हमारा बस चलता है पटना से सिलीगुड़ी...कई बार कानूनी अड़चन आती है...आप समझ ही रहे हैं इन सब काम में ऐसा चलता है..हम चाह रहे थे एक वकील रखने जो इनसब चीजों को देख ले...बदले में हम रुपये देंगे"

"...आपको मेरे बारे में कौन बताया"

"गूगल में देखा आपका प्रोफाइल...आप अगर फ्री हैं तो हम मिल सकते हैं"

"...हां लेकिन अभी हम थोड़ा फैमिली फंक्शन में जा रहे थे"

"कोई बात नहीं...बाद में मिल लेंगे...फंक्शन कब है"

"29 को है पूर्णिया में"

इसके बाद गोल-गोल होते हुए बात समाप्त हो गई। यह उम्मीद से ज्यादा सफल दांव था जिससे कई चीजों की पूरी तरीके से पुष्टि हो गई थी।

इसके बाद जो हुआ वह एक कराह था जो लंबे समय तक चला।

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