Friday, June 1, 2018

बीते साल की अगस्त की बारिश



                         ये है मुंबई मेरी जाम!

भाग्य की जिद के कारण रेनकोट ऑर्डर करना पड़ा था। भाग्य के लिए वह मुंबई की पहली बारिश थी और मेरे लिए चौथी। तीन बारिश मैंने छाता में बिताया था लेकिन चौथी से पहले ही शादी हो गई। दफ्तर के लिए निकलते वक्त वह याद से पूछ लेती कि डिक्की में रेनकोट रखा है न!

अंटॉप हिल से वरली के बीच आठ किलोमीटर की दूरी है। हिंदमाता फ्लाईओवर के बाद अगर नीचे ट्रैफिक नहीं मिला तो यह दूरी बीस मिनट की है। परेल फ्लाईओवर के नीचे के सिग्नल का ट्रैफिक जाम मुंबई के सबसे बुरे जामों में से एक है।

बूंदाबूंदी के बीच अंटॉप हिल से निकलकर वडाला की तरफ गाड़ी घुमाने के दो-तीन मिनट बाद लगा बादल फटा है। साढ़े ग्यारह बजे की एडिटोरियल मीटिंग थी और ग्यारह बजे मैं टिफिन बैग में डालकर निकल चुका था। जेब से डायरी, कलम, वॉलेट और रूमाल को निकालकर डिक्की में डाला और फिर ऑफिस की तरफ बढ़ गया। रेनकॉट को डिक्की में ही रहने दिया। उसे डिक्की से निकालकर पहनना भारी काम लगता था! दादर के फाईव-गार्डन के पास तक आते-आते बारिश अजीब सी लगने लगी। ऐसा लगा जैसे आक्रोश में बरस रही हो। गाड़ी किनारा करना चाहा लेकिन पूरा सड़क इस तरह लबालब था कि गाड़ी किनारा करना खतरनाक हो सकता था। भाग्य को फोन करने के लिए गाड़ी बीच रोड में ही खड़ी की और डिक्की से बचते-बचाते फोन निकाला तो छह मिस्ड कॉल थे। डाटा कनेक्ट किया तो चारों तरफ मचे हाहाकार का पता चला। 

रिपोर्टर्स के वाट्सएप ग्रुप में हर तरफ से खबरों की बौछार हो रही थी। सरकारी दफ्तर के बंद होने सहित बीएमसी के दिशानिर्देश ग्रुप में तैर रहे थे। भाग्य को फोन किया तो फोन रिसिव नहीं हुआ। दूसरी बार फोन करता इससे पहले दिल्ली से फोन आ गया।

योगेश लाईव कितने देर में दे पाओगे?
मैं अभी ऑफिस पहुंचा नहीं हूं।
कितनी देर में पहुंचोगे।
रास्ते में हूं, पानी भरा है हर जगह।
पहुंचते ही फ्रेम दे देना।

फोन कट हो गया। दिल्ली न्यूजरूम में मुंबई में बारिश से मचे हाहाकार की खबर आ चुकी थी और उन्हें रिपोर्टर का लाइव चाहिए था जो कि स्क्रीन पर हालात दिखाते हुए पूरा ब्यौरा दे सके। लाईव या हॉट स्विचिंग वह धुरी है जिसपर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नाचता है।

ओबी इंजीनियर को फोन करने पर पता चला कि कुर्ला स्टेशन में ट्रैक पर पानी आ जाने से लोकल का परिचालन ठप है। इतना तय हो गया कि अब लाईव नहीं हो पाएगा, दूसरा विकल्प पीटूसी का था। बूम (वह माईक जिसे हाथ में लेकर रिपोर्टर रिपोर्टिंग करता है) बैग में था, जरूरत कैमरामेन यानि स्ट्रिंगर की थी, जो पीटूसी रिकॉर्ड करे और फिर ऑफिस जाकर फीड रूम से उसे दिल्ली फीड कर दे ताकि उसे चैनल पर चलाया जा सके। स्ट्रिंगर्स को फोन करने के बाद पीटूसी की संभावना भी खत्म हो गई क्योंकि सभी स्ट्रिंगर जहां-तहां फंसे हुए थे।

सड़क पर सन्नाटा पसर चुका था और दृश्य भयानक था। पानी से भरे सड़कों पर कहीं दूर कोई आदमी काले रेनकोट में रेंगता हुआ ऐसा लगता था जैसे कोई भूतहा फिल्म का प्रेत हो। बारह बजे दिन में शाम छह बजे रहे थे।

गाड़ी के साइलेंसर में पानी भर जाने के कारण गाड़ी बंद हो गई। जूते को डिक्की में डालकर गाड़ी खींचते हुए हिंदमाता फ्लाईओवर पर आ गया। हिंदमाता के दोनों तरफ के फ्लाईओवर दादर टीटी और परेल के बीच करीब चार फुट पानी जमा हो चुका था। बारिश का जोश कायम था। बसें, टैक्सियां, मोटरसाइकिल जो जहां थे वहीं ठहर गये। गाड़ी फ्लाईओवर पर एक कोने में टिका दी और कतार में खड़ी टैक्सियों में से एक में जाकर बैठ गया।

फोन निकाला तो कई मिस कॉल्स पड़े थे। अंतिम कॉल दिल्ली ऑफिस से था। वाट्सएप से पता चला कि एडिटोरियर मीटिंग किसी के भी ऑफिस नहीं पहुंचने के कारण रद्द कर दी गई है। भाग्य का मैसेज था – कपड़ा समेटने बालकनी में गई थी। भाग्य को तुरंत फोन किया और उसे बता दिया कि हिंदमाता फ्लाईओवर पर टिका हुआ हूं। बात और होती इससे पहले दिल्ली से फिर वेटिंग शुरू हो गया। उन्हें तुरंत फोन-इन चाहिए था क्योंकि लाईव की सारी संभावनाएं खत्म हो चुकी थी।
और सीधे चलते हैं मुंबई जहां योगेश हमारे साथ फोन लाईन पर जुड़ चुके हैं...

फोन-इन देने के बाद टैक्सी वाले को शायद यह समझ में आ गया कि उसकी गाड़ी में कोई पत्रकार शरण लिए हुए है। मुंबई में पत्रकारों की इज्जत के भाव से देखा जाता है। चाचा ने इस बार अपना रूमाल निकालकर दे दिया क्योंकि वह मुझे मेरे भींगे रूमाल से खुद का सर पोछते हुए लगातार आईने से देख रहे थे।

करीब पांच मिनट के अंतराल पर दूसरा फोन फिर दिल्ली से आया लेकिन यह फोन स्टूडियो से नहीं बल्कि दिल्ली डेस्क के मोबाईल से आया था। अमित साहू फोन पर थे।

योगेश हमें लाइव चाहिए
वाट्सएप पे क्लिप तो भेजा है।
रिपोर्टर लाइव की रिक्वायरमेंट है।
लेकिन ओबी नहीं आ सकती यहां पर, बसें खराब होकर पड़ी है...!
ऑफिस में स्टूडियो में बैठकर दे दो।
लेकिन बीएमसी वालों ने अबतक नाव सड़क पर नहीं उतारी है (गुस्से में इतना ही मजाक सूझा)!
स्काईप पे आ जाओ।
मैसेंजर या वाट्सएप कॉलिंग चलेगा क्या!
नहीं, स्टूडियो से स्काईप से ही कनेक्ट हो पाएगा।
ठीक है, मैं इन्स्टॉल करता हूं!

फोन का सिलसिला जारी रहा। फोन में स्काईप इंस्टॉल नहीं था। भारी बारिश के कारण नेटवर्क भी खराब हो चुका था। बारिश ऐसी थी कि टैक्सी के छत पर बूंदों के गिरने का आवाज से अंदर मुझे और टैक्सीवाले चाचा को बात करने तक में दिक्कत आ रही थी। कई बार हमें जोर से बोलना पड़ता।
स्काईप इंस्टॉल करते-करते कई बार फोन आने के कारण वह इंस्टॉल नहीं हो पा रहा था। पूरे देश में मुंबई में मचे हाहाकार की खबर फैल चुकी थी। 

वाट्सएप पत्रकारिता के दौर में सब पत्रकार जहां थे वहीं से जानकारी जुटाकर और उसे पुष्ट करके अपने इनपुट को भेज रहे थे और वह ऑन एयर हो रहा था। बांद्रा, जुहू, अंधेरी, वरली, नवी मुंबई सहित सभी जगहों के हाल कमोवेश एक जैसे ही थे।

तमाम अवरोधों के बीच आखिरकार स्काईप इंस्टॉल हो गया और फिर टैक्सीवाले चाचा से उनका छाता लेकर मैं गाड़ी से बाहर निकला। निकलते ही छाता हवा हो गया। भागकर स्कूटी की डिक्की से रेनकोट और दूरदर्शन का बूम निकाला। हाथ में दूरदर्शन का बूम देखते हुए फ्लाईओवर पर खड़ी गाड़ियों के अंदर शरण लिए लोगों ने हाथ हिलाना शुरू कर दिया। मोबाईल पूरी तरह भींग चुका था और किसी भी वक्त हमेशा के लिए बंद हो सकता था। लोग बारिश की परवाह किये बिना पीछे खड़े हो गये। टीवी पर आने का सपना किसका नहीं होता है!

आप जो यह दृश्य देख रहे हैं यह दादर के हिंदमाता फ्लाईओवर का है, जहां नीचे का पूरा क्षेत्र जलमग्न हो चुका है...पूरा फ्लाईओवर इस मुसीबत में फंसे लोगों की शरणस्थली बना हुआ है..हम चाहेंगे कि कुछ लोगों से बात करें.... पहले से कम चल रही मोबाईल की बैट्री वीडियो कॉल में लाल पर आ चुकी थी और फिर जिस अंदाज में फिल्म 16 दिसंबर में विक्टर अंत में गोली से छलनी होने के बादभारत माता की जय का उद्घोष करते हुए दुश्मन के सीधे सामने आकर गोली दागना शुरू करता है वैसे ही मोबाईल की जान निकलने से पहले मैंने मोबाईल का फ्रंट कैमरा लोगों से हटाकर खुद पर फोकस किया और बीएमसी और राज्य सरकार ने आपता प्रबंधन के लिए जितने संदेश जारी किये थे, उसे कह डाला। फोन बंद!

पीछे पलटकर देखा तो टैक्सी वाले चाचा पॉलीथीन में कुछ दबाए खड़े होकर सबकुछ देख रहे थे। मुझे देखते ही कहा कि आपका ये फोन बहुत देर से बज रहा था। नोकिया का वह छोटा फोन मैं आपात स्थिति के लिए साथ लेकर चलता था क्योंकि एंड्रॉयड फोन सबकुछ दे सकती है लेकिन बैट्री बैकअप नहीं दे सकती। छोटा फोन मैं टैक्सी में छोड़ रखा था!

देखा तो भाग्य का मैसेज था – लंच कर लेना।

देर रात करीब एक बजे तक मुंबई फ्लाईओवर पर फंसा रहा और कल होकर उस मुंबई को कोई देखता तो वह यकीन नहीं करता कि यह वही मुंबई है जो कल थमी हुई थी। कल उसी फ्लाईओवर पर फिर अस्सी-सौ की रफ्तार में गाड़ियां भागी और फिर वहीं से मैंने हॉटस्वीच दिया!
अब रेनकोन के लिए भाग्य को मुझे याद दिलाना नहीं पड़ता है।

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