दास्तान-ए-फेमिनिज्म
आईपीसी की धारा 300 के तहत जो हत्या वर्णित हैं उसके मुताबिक अगर सीता और गीता के बीच अचानक हिंसक झड़प होती है और दूर खड़ी बबीता मौका देखकर गीता को हाथ में चाकू थमा देती है ताकि वह सीता को मार दे तो ऐसे मामले में चाकू मारने वाली गीता को नहीं बल्कि बबीता को हत्या को दोषी माना जाता है। गीता का अपराध कानून के तहत अपवाद की श्रेणी में आता है।
दूसरा उदाहरण यह है कि मान लीजिए अमित और अमिता दंपति हैं। दोनों के बीच नोकझोंक होती है। दूर खड़ी अर्पिता इसे देख रही है। अर्पिता की जिंदगी में अंधेरा व्याप्त है और उसे अमिता से वैसी ही खुन्नस है जैसे बबीता को गीता से थी। लेकिन अर्पिता अमिता को चाकू नहीं देती है बल्कि उसे उसके पति के खिलाफ उकसाती है। अमिता, जो कि पहले से अपने पति से नाराज है, अर्पिता के बहकावे में आकर वह अपने अंदर और कड़वाहट भर लेती है और इस सब का अंत उस रिश्ते की “हत्या” के रूप में होता है। सीता-गीता की कहानी और अमित-अमिता की कहानी में फर्क इतना है कि पहले वाले में तीसरा शख्स हत्यारा घोषित होता है और कानून उसे कम से कम आजीवन कारावास सुनाती है लेकिन दूसरे वाले मामले में षडयंत्र कर्ते को हत्यारा नहीं बल्कि “फेमिनिस्ट” घोषित किया जाता है।
“वीरे दी वेडिंग” फिल्म, पिंक, लव यू जिंदगी या लिपिस्टिक अंडर माय बुरका से मिलती जुलती फिल्म होगी ऐसा ट्रेलर देखकर लगता है। फिल्म में फेमिनिज्म के नाम पर वह सबकुछ परोसा गया है जो इस फिल्म को सामाजिक विषय पर बनी फिल्म जैसी छवि दे सके।
इससे ज्यादा मजेदार क्या होगा कि पुरूषों को कोसती हुई फिल्म “वीरे दी वेडिंग” का जो ट्रेलर यू-ट्यूब पर है, उसे देखने से ठीक पहले लक्स सैफ्रन ग्लो के एक विज्ञापन से होकर गुजरना पड़ता है, जिसमें करीना कपूर अपने निखरे त्वचा का राज खोल रहीं हैं। लक्स सैफ्रन ग्लो का विज्ञापन करते हुए अपनी त्वचा की खूबसूरती दिखाते हुए करीना बेहद खूबसूरत दिख रही हैं। करीना साबुन की उस कंपनी के लिए एक प्रोडक्ट हैं, जिसकी त्वचा को बेचकर कंपनी रूपये कमा रही है। यह अलग बात है कि सुंदरता का यही मिथक देश और दुनिया की कई महिलाओं के लिए उनकी पूरी जिंदगी तवाह करने का एक कारण रहा है। लेकिन करीना यहां प्रोडक्ट हैं, यह वैसी ही है जैसे ”फेमिनिज्म” एक प्रोडक्ट है जिसे “वीरे दी वेडिंग’ के माध्यम से बेचकर अनिल कपूर फिल्म्स एंड कम्यूनिकेशन नेटवर्क रूपये कमा रहा है।
एक बार सोनम कपूर से किसी पिंक पेपर को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि वह फिल्म इंडस्ट्री में जो भी हैं वह अपने पिता की बदौलत हैं। हालांकि अगर अभिषेक बच्चन या सोनम कपूर अगर ऐसा न भी कहें तो लोगों को यह समझ में आ ही जाता है कि वह किसके बदौलत इस ग्लैमर में जी पा रहे होंगे।
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सोनम कपूर से सोनम कपूर आहूजा हुई एक भारतीय फेमिनिस्ट |
ट्रेलर का यही एक पहला डायलाग यह समझने के लिए काफी है कि फिल्म फेमिनिज्म के नाम पर कूड़ा परोसने के अलावे और कुछ नहीं कर रही है।
इस देश में अनगिनत ऐसे जोड़े हैं जो एक दूसरे से बस प्यार या बस शादी करते हैं और प्यार के बाद शादी या शादी के बाद प्यार जैसे आरोह-अवरोह में एक मधुर जिंदगी बीताते हैं।
खैर!
“भारतीय फेमिनिज्म” उस दौड़ में है जब इसकी गतिविधियों के कारण फेमिनिज्म की वास्तविक धारणा भी संदेह के घेरे में आ गई है। “फेमिनिज्म” की आड़ में पब्लिसिटी बटोरने वाली सोनम कपूर का शादी के तुरंत बाद ही अपना नाम सोनम कपूर आहूजा कर लेना, जायरा वसीम का मोलेश्टेशन के खिलाफ शिकायत करके सुर्खी बटोरने के बाद मामला ठंढा होने पर अपनी तरफ से ही माफी की पहल कर देना ये कुछ हालिया उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि “फेमिनिज्म” के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है वह सिवाय पाखंड के और कुछ भी नहीं है।
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