गूगल मेप, ईयरफोन और कैलकुलेटर के आईने में
मुंबई के एक निजी एफएम चैनल का एक विज्ञापन हाल में जारी हुआ है जिसमें एक बुजुर्ग टैक्सी चालक एक प्रेमी जोड़े को टैक्सी में मुंबई में कहीं ले जा रहा है।
जैसा कि अमूमन होता है, जोड़ा पिछली सीट पर बैठा है। एक मोड़ के पास से गुजरते हुए लड़का टैक्सी को आगे से दाएं लेने के लिए कहता है तो बुजुर्ग अपने तजुर्बे का हवाला देकर कहता है कि वह उस रास्ते से भी छोटे रास्ते से उसे वहां तक पहुंचा देगा जहां उसे जाना है। बात बढ़ती है तो बुजुर्ग टैक्सी चालक अपने उम्र का हवाला देते हुए कहता है कि वह मुंबई के हर रास्तों से वाकिफ है और जब गूगल मेप आया भी नहीं था तब से वह टैक्सी पर उन जैसे कई जोड़ों को मुंबई घुमा चुका है।
अभी हाल में बिहार जाना हुआ। पत्नी के लिए होम्योपैथ को कोई दवा लेनी थी और इस बारे में जानकारी नहीं थी कि वहां होम्योपैथ की दवा कहां मिलेगी। मेरी और पत्नी की बात पास बैठी कक्षा सात में पढ़ने वाली साली सुन रही थी। उसने बीच में ही कहा कि जायसवाल के यहां होम्योपैथ की दवा मिलेगी।
मुझे लगा कि शायद जायसवाल का कोई दवाखाना होगा जो उसके स्कूल के रास्ते में पड़ता होगा लेकिन वैसा नहीं था। वह कभी किसी के साथ कहीं गई थी तब उसने जायसवाल की क्लीनिक के बोर्ड पे पढ़ा था कि वहां होम्योपैथ की दवा मिलती है।
करीब सात साल पहले जब मैं दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर बनारस के एक साथी को लेने गया था तो उन्होंने एक मजेदार बात बताई थी।
वह अमेरिका से आए थे और उस वक्त रात के बारह बजने में कुछ ही मिनट बाकी रह गये थे। हमलोग एयरपोर्ट में ही बने एक रेस्टोरेंट में बैठकर उनकी दिल्ली से बनारस की कनेक्टिंग फ्लाईट का इंतजार करने लगे।
मैंने उनसे यूं ही पूछ लिया कि अमेरिका और भारत में सबसे बड़ा अंतर आपको क्या लगता है। मुझे उम्मीद थी कि वह कुछ ऐसा बताएंगे जो भारत को अमेरिका की तुलना में पिछड़ा दिखाएगा लेकिन उन्होंने यह कहकर चौंका दिया कि भारत के लोग अमेरिका के लोगों से ज्यादा स्मार्ट होते हैं।
उन्होंने चौंकाने का सिलसिला जारी रखते हुए तुरंत उसका उदाहरण भी पेश कर दिया। पास ही एक स्नैक्स की दुकान पर जाकर उन्होंने दुकानदार से पूछा कि जो फ्लाईट अभी आई है वह कहां से आई है। उन्होंने चेहरे का भाव ऐसा किया कि वह किसी का इंतजार कर रहे हों।
दुकानवाले ने चौंकाते हुए न केवल अमेरिका से आई उस फ्लाईट का पूरा विवरण दे दिया बल्कि बात बात में हवाई अड्डे के अंदर से बाहर की सारी प्रक्रिया बता डाली।
ऐसा ही कुछ पिछले दिन भी हुआ जब ईजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू मुंबई के होटल ताज में आये। होटल के बाहर ओबी वैन की पार्किंग और पूरी व्यवस्था करने के चक्कर में मोबाइल की बैट्री तीन फीसदी पर आकर टिक गई। फोन आना तो बंद होने से रहा!
पास के ही पान दुकान को मानमनोव्व्ल करके अपना मोबाइल चार्ज करने के लिए दे दिया। पानवाला निकला बिहारी तो कुछ बात भी निकलने लगी। बात बात में उसने ताज के रसोईए के नाम पते के अलावा, पिछले दिनों होटल में घटी हर छोटी बड़ी जानकारी दे दी। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह थी उसे इंटर्न के तौर पर वहां आए युवकों की भी पूरी कुंडली मालूम थी।

ये सब बातें इसलिए प्रासंगिक होने लगी हैं कि मुंबई लोकल से लेकर दिल्ली मेट्रो तक के पिछले करीब पांच साल के अनुभव से यही जान पड़ता है कि लोग अपनी आंख और मोबाईल स्क्रीन के बीच तीसरा कोई चीज देखना नहीं चाहते।
कान में अब बातों के बजाए ईयरफोन से निकले गाने भर रहे हैं।
आलम यहां तक पहुंच गया है कि दूध, अंडा और बेसन अगर एकसाथ खरीद लिया जाये तो कुछ दुकानदार रुपये जोड़ने के लिए कैलकुलेटर निकाल लेते हैं।
वहीं एक वह दौर भी था जब छह-पांच करते हुए पांच-छह सौ रुपये का जोड़ तो परचून की दुकान पर ऐसे ही हो जाया करता था।
मुंबई का वह वृद्ध टैक्सीवाला शायद उस अंतिम पीढी का कोई नुमाइंदा है जिसके बारे में वह एनआरआई मेहमान फख्र के भाव से उस दिन हवाईअड्डे पर बता रहे थे। आगे की पीढी कैलकुलेटर, ईयरफोन और गूगल मैप वाली हो चली है। हम अपनी खूबी बड़ी तेजी से खो रहे हैं।
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