फरवरी का ये महीना ऐसे ही बीतना है तो क्यूं न ये याद किया जाए कि फरवरी कब यादगार बीती थी!
शादी के बाद हमदोनों नए जोड़े की तरह एंटोपहिल आ गये थे। अब यहां से सफर शुरू करना था। रहने की जगह सहज नहीं थी लेकिन समझदारी से काम लेने पर वह जगह सहज हो गई थी। अंकल-आंटी कुछ दिनों के बाहर गये थे। ये एक अच्छा संयोग था।
खैर, जो सबसे जरूरी चीज थी वह थी गाड़ी। हमें कम से कम एक स्कूटी तो चाहिए ही थी, जिससे हम कम-से-कम मरीन ड्राईव तक तो जा सकें। टैक्सी का खर्चा बार-बार होता तो बजट संभालना मुश्किल हो जाता।
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